जब से उस युवा चींटे के पँख निकले थे वह हवा बातें करने लगा था. उसने सभी परिजनों और मित्रजनो पर अपने नए नए निकले पँखों का रुआब डालना शुरू कर दिया था, उसका आत्मविश्वास देखते ही देखते आत्ममुग्धता का रूप धारण कर गया। इस बदले हुए स्वरूप को देख देख उसकी माँ रूह तक काँप जाती. लाख समझाने पर भी बेटा यथार्थ के धरातल पर आने को तैयार न हुआ तो एक दिन बूढ़ी माँ ने अपनी बहू को सफ़ेद जोड़ा देते हुए भरे गले से कहा "इसे अपने पास रख ले बेटी।"
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
यहाँ तो माँ ने समझदारी दिखाते हुए बहुत सही निर्णय लिया और दिया , क्युकी भविष्य वो ही देख सकता है जो वर्तमान में जी रहा हो...कोई कहाँ तक किन्ही समस्याओं से लड़ सकता है, एक बार पक्का इरादा करो.
आपकी लघुकथाएं अद्वितीय होती है आदरणीय योगराज जी, आपको ह्रदय से बधाई
बच्चों को लेकर तो ममता हमेशा ही असुरक्षा के भाव से ग्रसित होती रहती है उस पर बेटे के बदलते हाव भाव और आज के वक़्त के हालात तथा भविष्य में आने वाले तूफ़ान को भांपने में माँ को जरा भी देर नहीं लगती,माँ के उसी अंदेशे को आपने कितनी सुगमता और सुघड़ता से इस लघु कथा में पिरोया है,लघु कथा अपनी बात रखने में सफल हुई ,इस शानदार कथा हेतु बहुत-बहुत बधाई आपको आ० योगराज जी|
सच कहा आदरणीय।
आत्ममुग्धता इस कदर ही अंधा बना देती है,लेकिन अनुभवी जनों को को तो भविष्य की आहट रहती है।
इस सफ़ल अभिव्यक्ति हेतु हार्दिक बधाई आपको।
सादर
आदर्णीय योगराज जी .. आपने 4 लाइनों मे 400 पेजों का सार लिख दिया । इतने कम शब्दों मे इतनी बड़ी बात लिखी जा सकती है ये भी सीखने को मिला । सुंदर अभिव्यक्ति के लिए आपको बधाई
आदरणीय योगराज जी
ऊंची उड़ान का यही हश्र होना है i माँ ने भविष्य पढ़ लिया i पर आपने जिस ख़ूबसूरती से कथा का गठन किया , वह अनिवर्चनीय है i काश ! हम आप से कुछ सीख पाते ! सादर i
आदरणीय योगराज जी
आपकी लघु कथा जभ भी पढता हूँ दिल अश-अश
wah sir khoob ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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