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क्या पाया तुमने

वो झूठी झूठी सी खुशी
वो बनावती सी हँसी
वो जबरदस्ती का रोना
कलाकारी है वो दुखी होना
अगर तुम यही कर सके
तो क्या पाया तुमने

वो मोहोताज संतुष्टि
वो सोच कर चुप रहना
वो लिखा हुआ सा कहना
वो भाव के विपरीत बहना
अगर ऐसे रुके हो तुम 
तो क्या पाया तुमने

वो दूसरों से पूछना खासियत अपनी
वो अपनी सफलता पर यकीन ना होना
वो मजाक जो हँसी के इन्तजार में रहता
वो शोक जो है अब जुबान से बहता
अगर ऐसे उलझे हो तुम
तो क्या पाया तुमने

जैसा है वैसा नहीं कहते
सिखाते हो के ऐसा नहीं कहते
फिर भी उलझन में हो रहते
के सब तुम्हारे जैसा नहीं कहते
जब सुनने कहने में ही फंसे हो तुम
तो क्या पाया तुमने

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Comment

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Comment by Bhasker Agrawal on February 28, 2011 at 12:34am

धन्यवाद गणेश जी

धन्यवाद वंदना जी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 26, 2011 at 12:21pm
बेहद खुबसूरत और संदेशपरक काव्य रचना , कुछ टंकण सम्बंधित त्रुटी परिलक्षित है , बधाई भाष्कर भाई |

कृपया ध्यान दे...

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