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फौलाद भी

चोट से आकार बदल लेते हैं

या टूट जाते हैं

फिर इंसान की क्या बिसात

कब तक सहेगा चोट

आखिर टूटना पड़ेगा

इंसान ही तो है

मगर

टूटकर भी कायम रहेगा

या बिखर जायेगा

ये इंसान की प्रकृति तय करेगी

 

हालात बदलने को तैयार है

पुरानी सड़क पर

डामर की नई परत बिछेंगी

खण्डरों का जीर्णोद्धार होगा

पुरानी इमारत के मलबे पड़े हैं

कुछ मलबे काम आयेंगे

कुछ मलबे मिटाये जायेंगे

ये इंसान भी

एक रोज़ मलबे की तरह पड़ा होगा

 

भंगार अनुपयोगी है

मगर भंगार की भी कीमत है

कुछ भंगार हैं

पानी की खाली बोतल की तरह

जिसकी कोई कीमत नही

खाली तो खत्म

मेरे दिल ने मुझसे पूछा

भंगार तुम्हे भी होना है

ये कहो

टूटकर भी काम आओगे

या टूटकर सड़ोगे?

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 18, 2014 at 8:53pm

टूटकर भी काम आओगे

या टूटकर सड़ोगे?

यह तो नियति पर निर्भर है पर इंसान तो टूट कर भी सम्हलता है 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 18, 2014 at 11:58am

मगर

टूटकर भी कायम रहेगा

या बिखर जायेगा

ये इंसान की प्रकृति तय करेगी

बहुत सुन्दर रचना। .यथार्थ को दर्शाती और सीख देती अच्छी रचना
भमर

Comment by Maheshwari Kaneri on May 17, 2014 at 4:06pm

सच कहा है ..बहुत सुन्दर..हार्दिक बधाई आदरणीय  शिज्जु जी .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 17, 2014 at 10:57am

जीवन के कटु सत्य को बखानती और मन में सुलगते प्रश्न पैदा करने वाली बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय भाई शिज्जु जी .

Comment by coontee mukerji on May 16, 2014 at 11:58pm

फौलाद भी

चोट से आकार बदल लेते हैं

या टूट जाते हैं

फिर इंसान की क्या बिसात....सच कहा है आपने हालात के आगे फ़ौलाद का दिल रखने वाले भी चूर चूर हो जाते हैं. बहुत ही सार्थक बात कही है.शिज्जू जी हार्दिक बधाई.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 16, 2014 at 11:25pm

सच! इंसान के जीवन में  सारे उतार -चढाव, उसकी प्रकृति पर ही निर्भर करते है. बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय शिज्जू जी

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