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दिल से ज्यादा हमें करता कोई मजबूर नहीं
रोज कहता कि घर है उनका बहुत दूर नहीं
मैकदे की चुनी खुद मैंने डगर है साकी
रिंद के दिल में तू रहती है कोई हूर नहीं
आज सागर पिला दे पूरा मुझे ऐ साकी
रिंद वो क्या नशे में जो है हुआ चूर नहीं
गर जो होती नहीं मजबूरी वो आती मिलने
प्यार मेरा कभी हो सकता है मगरूर नहीं
रुख पे बिखरी तेरी जुल्फों ने सितम ढाया है
आज चिलमन में तेरा रहना है मंजूर नहीं
यार माना कि पी सागर से है मैंने छककर
बेटी अंगूर की पी यूं तू मुझे घूर नहीं
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सुंदर भावों की सुंदर गजल … हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ आशुतोष ज़ी
आदरणीय आशुतोष भाई
अच्छी गज़ल हुई है , हार्दिक बधाई
रिंद के दिल में तू रहती है कोई हूर नहीं// तू रहता है होना चाहिये ( गज़ल के जानकार ही सही बतायेंगे )
सादर
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