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आज चिलमन में तेरा रहना है मंजूर नहीं

2122   1222  2122   22/112

दिल से ज्यादा हमें करता कोई मजबूर नहीं

रोज कहता कि घर है उनका बहुत दूर नहीं

 

मैकदे की चुनी खुद मैंने डगर है साकी

रिंद के दिल में तू रहती है कोई हूर नहीं

 

आज सागर पिला दे पूरा मुझे ऐ साकी

रिंद वो क्या नशे में जो है हुआ चूर नहीं

 

गर जो होती नहीं मजबूरी वो आती मिलने

प्यार मेरा कभी हो सकता है मगरूर नहीं

 

रुख पे बिखरी तेरी जुल्फों ने सितम ढाया  है

आज चिलमन में तेरा रहना है मंजूर नहीं

 

यार  माना कि पी सागर से  है मैंने छककर

बेटी अंगूर की पी यूं तू  मुझे घूर नहीं  

 

  

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 732

Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 11, 2014 at 11:02am

आदरणीय श्याम जी ..प्रोत्साहित करने वाले आपके इन शब्दों के लिये तहे दिल धन्यवाद ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 11, 2014 at 11:01am

आदरणीय शिज्जू जी ..आपके स्नेहिल शब्दों के लिए तहे दिल धन्यवाद ..आपकी दी हुई सीख पर अमल करने की कोशिस सदैव करता हूँ ..बस यूं ही स्नेह बनाए रखें .सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 11, 2014 at 10:58am
आदरणीया कुंती जी ..आपके सतत प्रोत्साहन से मेरी रचनाधर्मिता को नयी उर्जा मिलती है सादर धन्यवाद केसाथ
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 11, 2014 at 10:53am

आदरणीय शुशील जी ..हौसला अफजाई के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 11, 2014 at 10:52am

आदरणीय अखिलेश भाईसाब ...आपके प्रोत्साहित करने वाली टिप्पणी के लिए तहे दिल धन्यवाद ...भाई साब कई जगह मैंने साकी का प्रयोग स्त्रीलिंग के रूप में भी होते देखा है ..ठीक से याद नहीं है ..बिद्व्त जनों की राय से सही जानकारी मिल सकेगी ..सादर धन्यवाद के साथ 

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on May 10, 2014 at 10:37pm

waaaah waaah

Comment by ram shiromani pathak on May 10, 2014 at 7:48pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय। ………।  हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Shyam Narain Verma on May 10, 2014 at 10:05am
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 9, 2014 at 10:02pm

बहुत खूब आदरणीय डॉ आशुतोष सर बहुत बहुत बधाई

Comment by coontee mukerji on May 9, 2014 at 7:16pm

 

आज सागर पिला दे पूरा मुझे ऐ साकी

रिंद वो क्या नशे में जो है हुआ चूर नहीं......बहुत खूब.आशुतोष जी  आपको हार्दिक बधाई.

 

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