For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सूरज घिरा सवालों में (नवगीत) // --सौरभ

सिर चढ़ आया
फिर से दिन का
भीतर धमक मलालों में..
ऐसे हैं 
संदर्भ परस्पर..
थोथी चीख..  उबालों में !

जहाँ साँझ के
गहराते ही
भरें दिशाएँ हुआँ-हुआँ
फटी बिवाई
ले पाँवों में
नमी हुई है धुआँ-धुआँ

पथ के पिघले डामर को ले 
सूरज घिरा
सवालों में !

सेमल के घर आग लगी है
भीतर-बाहर
रुई-रुई
आँखों पारा छलक रहा है
बहते हैं
अवसाद कई

निर्जल राहें अवसादों की
रखें तरावट छालों में..

एक मुहल्ला अब भी
बसता-ढहता है
हर शाम-सुबह   
दृष्टि गड़ाये गिद्ध लगे हैं
लाशों पर
कर रहे सुलह

इस मरघट में मैना कैसे
सोचे तान खयालों में ?

************
-सौरभ
************
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 843

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 28, 2014 at 10:32pm

हार्दिक धन्यवाद अतेन्द्रजी, आपको मेरा प्रयास सार्थक लगा.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 28, 2014 at 10:31pm

आदरणीय राजेश कुमारीजी, आपकी सुधी और संवेदनशील दृष्टि से यह रचना समृद्ध हुई. यह सत्य है कि ऐसे जीवन और उसके दर्द को जीने वाले बस ऐसे ही जीया करते हैं, बिना उत्तर जाने बराबर प्रश्न करते हुए.
सादर

Comment by vandana on April 28, 2014 at 3:01pm

 

एक मुहल्ला अब भी
बसता-ढहता है
हर शाम-सुबह   
दृष्टि गड़ाये गिद्ध लगे हैं
लाशों पर
कर रहे सुलह
 

इस मरघट में मैना कैसे 
सोचे तान खयालों में ? 

गहरी पीड़ा की अभिव्यक्ति ....मन मस्तिष्क को आंदोलित करता नवगीत आदरणीय सौरभ सर सादर नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 28, 2014 at 12:48pm

आदरणीय सौरभ सर इस नवगीत का हर शब्द और उनका विन्यास अपनी बात मुखर होकर कहता सा महसूस होता है, बेहद खूबसूरत रवाँ नवगीत के लिये दिली दाद कुबूल करें

Comment by Sushil Sarna on April 26, 2014 at 4:44pm

एक मुहल्ला अब भी
बसता-ढहता है
हर शाम-सुबह
दृष्टि गड़ाये गिद्ध लगे हैं
लाशों पर
कर रहे सुलह

इस मरघट में मैना कैसे
सोचे तान खयालों में ? …वाह नवगीत में गहन भावों की सुंदर अभिव्यक्ति …सरल और सरस शब्दों का सुंदर प्रवाह पाठक को अंत तक बांधे रखता है .... इस अनुपम सृजन के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीय सौरभ जी

Comment by Shyam Narain Verma on April 26, 2014 at 10:15am
बहुत सुंदर नवगीत...बहुत-बहुत बधाई...................
Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on April 26, 2014 at 9:53am

आदरणीय सर जी सादर प्रणाम ........क्या कहे क्या न कहे हमारी मजाल कहाँ कि हम कमेंट्स करें ..फिर भी आप सबके मार्गदर्शन में हम भी चलना सीख रहें हैं ....वैसे आपकी हर रचना अपनें आप में होती है फिर भी यह नवगीत जो आज के दीन दशा को उकेरता है ....बहुत बहुत बधाई आपको और बारम्बार नमन आपकी कलम को


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 25, 2014 at 7:51pm

एक मुहल्ला अब भी 
बसता-ढहता है 
हर शाम-सुबह   
दृष्टि गड़ाये गिद्ध लगे हैं 
लाशों पर 
कर रहे सुलह 

इस मरघट में मैना कैसे 
सोचे तान खयालों में ? -----आह कहूँ या वाह कहूँ सोच रही हूँ ....बहुत ही मर्म स्पर्शी नव गीत लिखा है आपने  निर्धनता, मजबूरी के आंसुओं का सैलाब है ये रचना.. बहुत खूब ..बहुत- बहुत बधाई आपको आपकी कलम को नमन.   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
21 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service