रदीफ़ -के लिये
काफ़िया -शुभकामनाओं ,संभावनाओं , याचनाओं
अर्कान -2122 ,2122 ,2122 ,212
है बहाना आज फिर शुभकामनाओं के लिये
आँधियों की धूल में संभावनाओं के लिये .
नींद क्यों आती नहीं ये ख्वाब हैं पसरे हुये
हो गई बंजर जमीनें भावनाओं के लिये .
है बड़ा मुश्किल समझना जिंदगी की धार को
माँगते अधिकार हैं सब वर्जनाओं के लिये .
खौफ़ से जिसके हमेशा थरथराई जिंदगी
जानता हूँ वो झुका है याचनाओं के लिये .
गुनगुनाती थी मुझे छू कर कभी मदहोश सी
अब तरस जाता हूँ उन बहकी हवाओं के लिये .
सो रहा कबसे अरे अब जागना होगा तुझे
गीदड़ों की भीड़ में यम गर्जनाओं के लिये .
-ललित मोहन पन्त
18.04.2014
01.04 रात
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आपने सही कोट किया है, आदरणीय ललितमोहनजी..
आपको वाकई मजा आने लगा है.
शुभ-शुभ
AA PRACHI SINGH JI MAINE WO SHER GAZAL SE HATAA DIYA HAI MERE PICHHALE COMMENT MEN USKI JAGAH PAR EK AUR SHER MAINE KAHNE KI KOSHISH KI HAI .... TAKABULE RADEEF KE DOSH KE LIYE MAIN USE SUDHARANE KI KOSHISH MEN HUN PAR ... KISI AUR LAFJ SE MATRAAYEN GADBADAA JAA RAHI HAIN . AUR MUJHE MAZAA NHIN AA RAHAA HAI ... PAATH MEN JAA KAR JAB YAH PADHAA TO KUCHH RAAHAT HAI
अरूजियों और उस्ताद शाइरों द्वारा केवल स्वर का उला के अंत में टकराना कई स्थितियों में स्वीकार्य बताया गया है
यदि शेर खराब न हो रहा हो और यह ऐब दूर हो सके तो इससे अवश्य बचना चाहिए परन्तु इस दोष को दूर करने के चक्कर में शेर खराब हो जा रहा है अर्थात, अर्थ का अनर्थ हो जा रहा है, सहजता समाप्त ओ जा रही है अथवा लय भंग हो रहे है अथवा शब्द विन्यास गडबड हो रहा है तो इसे रखा जा सकता है और बड़े से बड़े शाइर के कलाम में यह दोष देखने को मिलता है . AAPKE AUR MARGDARSHAN KI APEKSHAA MEN ...
AA SAURABH PANDE JI ... AAPKE PROTSAHAN KE LIYE AABHAAR .. MAIN APNE SEEKHANE AUR SUDHAR KI BHARSAK KOSHISH MEN HUN . PAHLE KUCHH NHIN SAMJHATAA THA AB KUCHH KUCHH SAMJHANE LGAA HUN TO ACHCHHA LAG RAHAA HAI ... KHAS TAUR SE AAP SABHI KAA MARGDARSHAN ...DHANYWAAD ...
अद्भुत मतला केलिए विशेष बधाई.. . आगे के तीन शेर भी कमाल के हुए हैं.. बधाइयाँ !
सुझावों पर धयान दिया जाना रचनाकर्म संगत होगा.
सादर
सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० डॉ० ललित मोहन पन्त जी
बहुत बहुत बधाई इस प्रयास पर
हवाओं हम काफिया शब्द नहीं है
साथ ही दूसरे व अंतिम शेर में तकाबुले रदीफ़ का ऐब भी बन रहा है ...एक बार देख लें
सादर.
annapurna bajpai ji, धर्मेन्द्र कुमार सिंह ji , अरुन शर्मा 'अनन्त' ,jiशिज्जु शकूरji, महेश्वरी कनेरी जी , उमेश कटारा जी ,गिरिराज भंडारी जी ,सवितामिश्रा जी ,कुन्ती मुख़र्जी जी आप सबकी प्रतिक्रियाओं और प्रोत्साहन का ह्रदय से आभार … इस ग़ज़ल में मेरा एक नया शेर और पेश करने की इजाजत चाहता हूँ … गौर फरमायें …
कोठरी मन की जहाँ जब कैद हो जाता हूँ मैं
हैं जकड़ते दिन पुराने यातनाओं के लिये ।
आ0 ललित जी गजल शिल्प का मुझे खास ज्ञान नहीं , लेकिन गज़ल पढ़ने मे अच्छी लगी । दिली दाद कुबूल कीजिये
अच्छे अश’आर हुए हैं ललित जी। दाद कुबूल करें।
आदरणीय ललित जी मुझे काफिया नहीं मिला आपकी ग़ज़ल में इस लिहाज से ग़ज़ल ख़ारिज हो जाती है कृपया मार्गदर्शन करें.
मतले में ही मुझे काफिया नहीं मिला.
है बहाना आज फिर शुभकामनाओं के लिये
आँधियों की धूल में संभावनाओं के लिये .
(नाओं के लिये के लिए रदीफ़ हो गया अब बचा शुभकाम और संभाव इन दोनों में कोई तुकान्ता नहीं है आदरणीय तो काफिया किस प्रकार से हो सकते हैं ? कृपया मार्गदर्शन करें)
आदरणीय ललित सर बेहतरीन ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई आपको
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