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तीर दिल पे चलाये छुप के, पर ( ग़ज़ल ) गिरिराज़ भंडारी

2122       1212      112/22

बांट के     छाव,     धूप     पीते   हैं      

ज़िन्दगी  हम  शज़र  की जीते हैं

चाल दोनो तरफ की खुद चल के

खुश  बड़े   हैं , कि  दाँव  जीते  हैं

तीर  दिल  पे चलाये छुप के, पर

सामने   सब  के  ज़ख़्म  सीते  हैं

मैने  देखा  है  वक़्ते   आख़िर  में

हाथ   जितने  दिखे, वो   रीते  हैं

बात   उल्टी  लगेगी,  है  सीधी

स्वाद   मीठे,  असर  से  तीते  हैं

लम्हे खुशियों के ज्यों कपूर उड़े

ग़म के , ज्यों माह साल बीते हैं

**************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2014 at 8:45pm

आदरणीय केवल भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on April 2, 2014 at 8:34pm

क्या खूब गजल कही है जनाब, वाह्ह्ह्ह!! दिली दाद।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 2, 2014 at 8:26pm

आ0 भण्डारी भाईजी,  सादर प्रणाम!  वाह, बहुत सुन्दर गजल।  ढेरों दाद कुबूल करें। सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2014 at 8:05pm

आ. गुमनाम भाई , ग़ज़ल के सराहना के लिये आपका शुक्रिया ॥

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 2, 2014 at 7:39pm

तीर  दिल  पे चलाये छुप के, पर

सामने   सब  के  ज़ख़्म  सीते  हैं

मैने  देखा  है  वक़्ते   आख़िर  में

हाथ   जितने  दिखे, वो   रीते  हैं

बहुत अच्छी ग़ज़ल है सर जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2014 at 6:04pm

आदरणीया राजेश जी , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !! आदरनीया मेरे खयाल से उस शे र मे तकाबुले रदीफ का दोष नही बन रहा है , जैसे -- मैं और में , मे तकाबुले रदीफ का दोष नही  बन सकता वैसे ही तो ये भी है , आखिर में और रीते हैं ॥ एक बार और सोच के देख लीजिये !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2014 at 5:58pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , ग़ज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2014 at 2:17pm

तीर  दिल  पे चलाये छुप केपर

सामने   सब  के  ज़ख़्म  सीते  हैं-----बहुत खूब ....

मैने  देखा  है  वक़्ते   आख़िर  में------  इसमें तकाबुल ए रदीफेन  हैं शायद -----  मैंने आखिर में वक़्त के देखा   ----करके देखिये 

हाथ   जितने  दिखे, वो   रीते  हैं------इसमें 

 

बात   उल्टी  लगेगी,  है  सीधी

स्वाद   मीठे,  असर  से  तीते  हैं-------वैसे भी सीधी बात तीती लगती है सही कहा बहुत बढ़िया 

बहुत -बहुत बधाई आ० गिरिराज जी 

 

 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 2, 2014 at 12:06pm
अच्छे अश’आर हुए हैं गिरिराज जी, दाद कुबूल करें।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 2, 2014 at 12:04pm
अच्छे अश’आर हुए हैं गिरिराज जी, दाद कुबूल करें।

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