For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चादरें छोटी मिली हैं किश्मतों की-ग़ज़ल

2122    2122    2122  

***
आदमी  को  आदमी  से  बैर  इतना
भर रहा अब खुद में ही वो मैर इतना

*
दुश्मनो  की  बात  करनी व्यर्थ है यूँ
अब  सहोदर  ही  लगे  है गैर इतना

*
चादरें  छोटी  मिली हैं  किश्मतों की
इसलिए भी मत  पसारो  पैर इतना

*
दे रहे  आवाज  हम  हैं  बेखबर  तुम
कर  रहे  हो किस  जहाँ  में सैर  इतना

*
किस तरह आऊं बता तुझ तक अभी मैं
गाव! उलझन  दे  गया  है  नैर  इतना

*
झूठ  होते  हैं  सियासत  के  ये  वादे
इन  भरोसे  मत  हवा  में तैर इतना

मौलिक व अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

Views: 627

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on March 26, 2014 at 4:18pm
बहुत सुंदर लक्ष्मणजी ,बधाई
Comment by Sarita Bhatia on March 26, 2014 at 10:36am

आदरणीय धामी जी खुबसूरत गजल हुई है वाह 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 25, 2014 at 10:56pm

झूठ  होते  हैं  सियासत  के  ये  वादे
इन  भरोसे  मत  हवा  में तैर इतना.........वाह ! कमाल का शेर

बहुत बहुत बधाई आदरणीय लक्ष्मण जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 25, 2014 at 5:39pm

आदरणीय भाई अभिनव अरुण जी ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2014 at 5:36pm

झूठ  होते  हैं  सियासत  के  ये  वादे
इन  भरोसे  मत  हवा  में तैर इतना  आदरणीय लक्षमण जी बिलकुल सही बात की तरफ इशारा करता परामर्श देता शेर ..मेरी तरफ से तहे दिल बढाए स्वीकार करें .सादर बधाई के साथ 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 25, 2014 at 5:34pm

आदरणीय शिज़्जू भाई , वो शब्द किस्मत ही है ,टाइपिंग की भूल रह गयी है . रहस्यमय ढंग से भूल की ओर ध्यान दिलाने के लिए हार्दिक धन्यवाद.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 25, 2014 at 4:14pm

आदरणीय लक्ष्मणजी मेरा आशय शब्द किस्मत से है जिसे आपने किश्मत लिखा है

Comment by Abhinav Arun on March 25, 2014 at 2:32pm

अच्छी ग़ज़ल आदरणीय , बधाई ,,और नए अलफ़ाज़ भी सिखा दिए आपने इसके लिए विशेष आभार !!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 25, 2014 at 8:53am

आदरणीय भाई शिज्जू जी गजल अच्छी लगी , आभार .

मैर = साँप का जहर ,

नैर  = नगर

किस्मत की छोटी चादरों का आसय उसकी मेहरबानियों से है

धन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 24, 2014 at 9:46pm

आदरणीय लक्ष्मणजी ग़ज़ल पे कोशिश अच्छी  है, पर कुछ शब्दों के मतलब समझ नही पाया मसलन मैर, नैर। 

चादरें  छोटी  मिली हैं  किश्मतों की??

सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
43 minutes ago
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
46 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी, बहुत धन्यवाद"
46 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी, बहुत धन्यवाद"
47 minutes ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम जी सादर नमस्कार। हौसला बढ़ाने हेतु आपका बहुत बहुत शुक्रियः"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय "
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"जी ठीक है  मशविरा सब ही दे रहे हैं पर/ मगर ध्यान रख तेरे काम का क्या है ।"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी सादर अभिवादन स्वीकार करें। अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई।"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय मिथिलेश जी सादर नमस्कार। बहुत बहुत आभार आपका।"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर नमस्कार। बहुत बहुत शुक्रियः आपका"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी सादर अभिवादन स्वीकार करें। अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई आपको।"
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सम्माननीय ऋचा जी । बहुत बहुत आभार"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service