निःश्वसन
उच्छ्वसन
सब देह-कर्म, यह अवगुंठन
मोह-पाश के बंधन तुम
बस तुम! तुम ही तुम
व्यक्त हाव
अव्यक्त भाव
नेह-क्लेश, अभाव-विभाव
रूप-गंध के कारण तुम
बस तुम! तुम ही तुम
सम्मुख हो जब
विमुख हुए, तब
मनस-पटल की चेतनता सब
अनुभूति-रेख में केवल तुम
बस तुम! तुम ही तुम
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
निःश्वसन
उच्छ्वसन
सब देह-कर्म, यह अवगुंठन
मोह-पाश के बंधन तुम
बस तुम! तुम ही तुम---------हमारा जीवन ,ये आती जाती साँसे ,ये मोह माया सब उस सर्वशक्तिमान,निराकार अगोचर परब्रह्म से ही तो हैं
व्यक्त हाव
अव्यक्त भाव
नेह-क्लेश, अभाव-विभाव
रूप-गंध के कारण तुम
बस तुम! तुम ही तुम--------मानव/प्रकृति स्वभाव रंग गंध सब उसी से है
वो हमारे अन्दर है सब कुछ उसीसे है
बहुत सुन्दर भावों को शब्दों की माला में पिरोया है ...अतिसुन्दर उत्कृष्ट प्रस्तुति
बहुत- बहुत बधाई ब्रिजेश जी.
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आदरणीय बृजेश भाई एक भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई .
आदरणीय गिरिराज जी, आपका बहुत-बहुत आभार!
आदरणीया सरिता जी, आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय बृजेश भाई , आंतरिक भाव स्थिति को बयान करती आपकी सुन्दर रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥
बहुत खूब आपका कथन हमेशा बढ़िया होता है
आदरणीय शिज्जु जी बहुत-बहुत आभार!
आदरणीय प्रदीप जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय बृजेश जी बहुत सुन्दर व सुगढ़ भावाभिव्यक्ति है इस खूबसूरत रचना के लिये बहुत बहुत बधाई
सच है आदरणीय श्री ब्रजेश जी
इस से भी परे है कुछ और
देर है मै और तुम की परिधि लांघने की
सुन्दर भाव युक्त रचना हेतु सादर बधाई.
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