For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बीज मन्त्र..................!

दोहा- बीज बीज से बन रहा, बीज  बनाता  कौन?
        बीज सकल संसार ही, बीज मन्त्र बस मौन।।

चौ0- निष्ठुर बीज गया गहरे में। संशय शोक हुआ पहरे में।।
        मां की आखों का वह तारा। दिल का टुकड़ा बड़ा दुलारा।।
        सींचा तन को दूध पिलाकर। दीन धर्म की कथा सुनाकर।।
        बड़े प्रेम से सिर सहलाती। अंकुर की महिमा समझाती।।
        शिशु की गहरी निन्द्रा टूटी। अहं द्वेष माया भी छूटी।।
        अंकुर ने जब ली अॅंगड़ार्इ। फूटा जोश रवानी आर्इ।।
        सारे कुल को कर उजियारा। द्वेष रहित निश्छल अतिप्यारा।।
        हर्षित पुलकित मन मतवाला। प्रेम सरस रस तन का प्याला।।
        बहकी झूम-झूम पुरवार्इ। दिग्दिगन्त सुगंध फैलार्इ।।
        फसल बढ़ी ज्यों फूली सरसों। होली में जन मन त्यों हर्षो।।
        संशय जाति धर्म के कुनबे। पानी-खाद सॅंवारें बलबे।।
        फसल कड़क कर इकदिन बोली। मैं ही जीवन रक्षक गोली।।
        भरे खेत में मोती दाने। चुॅंगती चिडि़यॉं जीव दीवाने।।
        अहं द्वेष फिर से गहराया। माया जड़ ने मन भरमाया।।
        कृषक सत्य मन अति गुणकारी। भोर हुआ निश गर्इ ससुरारी।।
        कर में हॅंसिया चपल उठाकर। सॉंझ ढले तक फसल कटा कर।।
        कहे सत्य हे! मूरख कामी। स्वयं देव का बनता स्वामी।।
        समय नहीं है एक समाना। बाल-युवा-जर-मृत्यु बहाना।।
        सहज रीति नित प्रीति लुटाए। अकड़ नीति रत धूल चटाए।।
        बीज वृक्ष बन बीज सॅंवारें। बीज मन्त्र बन कर संहारे।।
        मानव जन्म हुआ सत्कारी। फूलो फलो बनों हितकारी।।
        छुद्र बीज बनता जब बरगद। सकल जीव को छाया गदगद।।
        कण से पर्वत पर्वत ही रज। बूंद सिन्धु सम फैला अचरज।।
        कर्म शक्ति ही उर का स्वामी। सदगुरू समरस आत्मा रामी।।

दोहा- मैं तुम हूं तुम स्वयं हो, तुम्हीं जगत के मूल।
       मैं माया मन में मरी, तुम ही तेज त्रिशूल।।

के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 665

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 28, 2014 at 1:49am

भाव-भावना और विचारों को शब्दबद्ध करने में आपको सफलता मिली है, भाई केवल प्रसादजी. 

वैसे कुछ गढ़ भावों को आप शब्द देते समय ऐसे शब्दों को भी स्थान दे देते हैं जिनका होना पूरी पंक्ति या वाक्यांश को ही असंप्रेषणीय बना देता हुआ लगता है. जैसे, बीज का निष्ठुर होना, जबकि आगे उसके उन्नत भावों और कर्म की चर्चा है. या, बीज के धरती में जाते ही शोक-संशय का पहरे में होना ! ये ऐसे ही कुछ उद्धरण हैं.

फिर, आखिरी दोहे का पहल चरण ही शिल्प के अनुसार गलत है.

लेकिन ये तो हुई शिल्पगत या संप्रेषण की बातें. 

कविता के स्तर पर यह रचना आध्यात्मिक मनोदशा में क्रियाशीलता का सुन्दर बखान है. ऐसी रचना के लिए हार्दिक बधाई.  

शुभ-शुभ

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2014 at 6:21pm

आ0 भण्डारी भार्इ जी, सादर प्रणाम!   रचना पर आपकी उपस्थिति, स्नेह एवं उत्साहवर्धन मुझे अत्यधिक प्रभावित करती है।  आपका हार्दिक आभार। सादर,  

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 25, 2014 at 6:21pm

आ0 कुन्ती  जी,  सादर प्रणाम!   रचना पर आपकी उपस्थिति, स्नेह एवं उत्साहवर्धन मुझे अत्यधिक प्रभावित करती है।  आपका हार्दिक आभार। सादर,  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 24, 2014 at 10:58am

आदरनीय केवल भाई , बहुत सुन्दर आध्यात्मिक समझ की रचना हुई है , मेरी दिली  बधाई स्वीकार करें ॥

Comment by coontee mukerji on March 23, 2014 at 12:04pm

बहुत सुंदर रचना है. केवल जी मनमें अनायास आध्यात्मिक भावना जाग उठी. साधुवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service