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होली के हुड़दंग - अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा  रंग जमाएंगे।                                                                

भ्रष्ट को कालिख पोतेंगे, सज्जन को गुलाल लगाएंगे।।                                    

 

 

काले धन वालों को काला, और सभी को सतरंगी।                                                   

पिचकारी की तेज धार से, बदन सभी का भिगाएंगे।।                                                   

अब के बरस  की होली में, कुछ ऐसा  रंग जमाएंगे।

 

दुर्जन सब सुख भोग रहे, सज्जन अभाव में जीते हैं।                                                                                              

जितने भ्रष्ट दिखें होली में, सब को सबक सिखाएंगे।।                                                           

अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा रंग जमाएंगे।                                                                

 

घूसखोर, भ्रष्टाचारी, कुछ , बलात्कारी,  बेईमान हुए।                                                    

होली में कोई बच न पाए, गधे में सब को घुमाएंगे।।                                                   

अब के बरस  की होली में,  कुछ ऐसा रंग जमाएंगे।                                                                

 

सज्जन की आबादी कम है, देश में दुर्जन ज्यादा हैं।                                 

दिल्ली की ऐसी होली में, गधे भी कम पड़ जाएंगे॥                                     

अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा रंग जमाएंगे।                                     

 

भ्रष्ट को कालिख पोतेंगे, सज्जन को गले लगाएंगे।                                                                

अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा  रंग जमाएंगे॥

 

######################                 

 

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव   

विवेकानंदनगर, धमतरी

मौलिक व अप्रकाशित  

 

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Comment

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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 12, 2014 at 8:04pm

आदरणीय विजय भाई,

आपकी सार्थक प्रतिक्रिया और रचना की  प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

काश ऐसी होली हर महानगर में होती 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 12, 2014 at 8:03pm

आदरणीय नीरज  भाई,

रचना की  प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ॥ 

काश ऐसी होली  हर महानगर में होती 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 12, 2014 at 7:59pm

आदरणीय लक्ष्मण् भाई,

 रचना की  प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 12, 2014 at 7:52pm

आदरणीय राजेशकुमारीजी,

रचना की  प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

 गधे भी कम पड़ जाएंगे ......तो...... हर गधे में तीन बिठायेंगे 

पुनः हृदय से धन्यवाद , आभार

 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 12, 2014 at 7:43pm

छोटे  भाई गिरिराज्,

रचना की  प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 12, 2014 at 7:41pm

सुन्दर सामयिक और सार्थक सन्देश देती गीत रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 12, 2014 at 7:32pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई,

रचना की  प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ॥

Comment by विजय मिश्र on March 12, 2014 at 1:04pm
"भ्रष्ट को कालिख पोतेंगे, सज्जन को गले लगाएंगे।
अब के बरस की होली में, कुछ ऐसा रंग जमाएंगे॥

यही मनोभाव हमें परिवर्तन देगा , भ्रष्टों की उपेक्षा और तिरस्कार ही समाज को बचा पाएगा | अच्छे कम हैं फिर भी 'हम हैं ' को जाग्रत रखना होगा |सुंदर दिकदर्शी रचना हेतु बधाई अखिलेशजी |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 12, 2014 at 12:02pm

हहाहाहा ----क्या ऐसा कर पायेंगे ?कहाँ कहाँ से ढूंढ कर लायेंगे ,गधे कम पड़ जायेंगे 

Comment by Neeraj Neer on March 12, 2014 at 9:30am

आहूत ही सुन्दर होली के हुड़दंग का इरादा है .. बहुत खूब. 

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