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क्या तुम्हे भी...? (अतुकांत)

तुम बिन

तन्हा-तन्हा सी साँसें

पल-पल गुजरता रहा

वरष के जैसा

बेचैनी की धीमी-धीमी आग में

बसंत बीत ही गया

न जाने कैसे कटेगा..?

रंगों का महीना

तुम बिन तो है

बे-रंग सा फाल्गुन

दिन तो काटने ही हैं

इस तरह क्यों न थका लूँ तन को

कि शाम तक

चूर हो जाय !

ये तन्हा रातें

बिन करवट ही

बीत जायें ।

इस तन्हाई को मेरे भाग्य ने ही सौंपा है मुझे
क्या तुम्हें भी..?

      जितेन्द्र 'गीत'

 (मौलिक व् अप्रकाशित)

 

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 26, 2014 at 10:05pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी, स्नेहिल मार्गदर्शन बनाये रखियेगा

सादर !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 26, 2014 at 4:11pm

बढिया प्रयास हुआ है.

शब्दों को लेकर थोड़ा सचेत रहें.

शुभेच्छाएँ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 12, 2014 at 11:04pm

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया मीना दीदी,स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 12, 2014 at 11:03pm

आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीय शिज्जू जी,स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by Meena Pathak on March 10, 2014 at 10:46pm
Bahut sundar.. Hardik badhai

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 10, 2014 at 9:27am

भाई जितेन्द्र जी बहुत खूबसूरत रचना है बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 8, 2014 at 8:05am

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया मुझे बहुत ख़ुशी व् मनोबल प्रदान करती है आदरणीय विजय जी, आपका ह्रदय से आभार .अपना स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 8, 2014 at 8:02am

रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय केवल जी, अपना स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 8, 2014 at 8:00am

आपको कविता के भाव रुचिकर लगे मेरा लेखनकर्म सार्थक हुआ आपका हार्दिक आभार आदरणीया अन्नपूर्णा दीदी, अपना स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by vijay nikore on March 7, 2014 at 7:06am

बहुत ही सुन्दर भाव पिरोय हैं ...आपको बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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