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एक कतरा रोशनी है एक कतरा जाम है

2122        2122    2122      212 

एक कतरा रोशनी है एक कतरा जाम है 

दिल जलों का दिल जलाने आ गयी फिर शाम है 

धडकनों की सुन जरा तू पास आकर के कभी 

धडकनों की हर सदा पर इक तेरा ही नाम है 

उनके क़दमों के नहीं नामों निशा भी अब कहीं 

ख्वाब में पर क़दमों की आहट को सुनना आम है

 

जुगनुओं की रोशनी से हर चमन आबाद था 

रोशनी क्या आज तो जुगनू हुआ गुमनाम है 

उनसे बिछड़े जाने कितने ही जमाने हो गए 

पर न सूखी आँख आँखों से छलकता जाम है 

मौलिक व अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 14, 2014 at 4:46pm

आपकी ग़ज़ल पर दाद है, भाईजी.

धडकनों की सुन जरा तू पास आकर के कभी .. ’कर के’ का प्रयोग न ही करें तो उचित. के वस्तुतः कर का ही संक्षिप्त रूप है.
धडकनों की हर सदा पर इक तेरा ही नाम है... सदा पर या सदा में ?

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 25, 2014 at 2:06pm

धडकनों की सुन जरा तू पास आकर के कभी 

धडकनों की हर सदा पर इक तेरा ही नाम है ............बहुत सुकोमल शेर 

हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 24, 2014 at 9:14pm

धडकनों की सुन जरा तू पास आकर के कभी 

धडकनों की हर सदा पर इक तेरा ही नाम है

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...बढ़िया गजल बधाई आपको....जैसा की गिरिराज भाई ने सुझाया है कुछ अलग अर्थ में बनेगी गजल ..मुझे तो ये आप की लिखी सुन्दर लगी
भ्रमर ५

Comment by Shyam Narain Verma on February 22, 2014 at 4:14pm
बहुत बढ़िया गजल बधाई आपको । 
Comment by ram shiromani pathak on February 22, 2014 at 3:41pm

अहा आनंद आ गया बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय आशुतोष  जी आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥//सादर

Comment by Neeraj Neer on February 22, 2014 at 9:01am

दिलजलों का दिल जलाने आ गयी फिर शाम है ....  वह बहुत खूब . सुन्दर ग़ज़ल कही है .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 22, 2014 at 8:51am

धडकनों की सुन जरा तू पास आकर के कभी 

धडकनों की हर सदा पर इक तेरा ही नाम है ..............वाह! बहुत खूब

हार्दिक बधाई स्वीकारें इस सुंदर गजल पर आदरणीय डा.आशुतोष जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 21, 2014 at 7:28pm

आदरणीय आशुतोष भाई , बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

धडकनों की सुन जरा तू पास आकर के कभी  -- इस मिसरे मे  की , की जगह  को  कहना सही रहेगा , या ज़रा की जगह सदा कहना सही होगा , ऐसा मुझे लगता है , आपक पढ़ के देख लीजियेगा , शायद आपको भी सही लगे ॥

Comment by shashi purwar on February 21, 2014 at 2:53pm

वाह वाह आदरणीय आशुतोष जी बहुत सुन्दर गजल है

एक कतरा रोशनी है एक कतरा जाम है 

दिल जलों का दिल जलाने आ गयी फिर शाम है 

धडकनों की सुन जरा तू पास आकर के कभी 

धडकनों की हर सदा पर इक तेरा ही नाम है 

उनके क़दमों के नहीं नामों निशा भी अब कहीं 

ख्वाब में पर क़दमों की आहट को सुनना आम है

 वाह बहुत पसंद आये शेर , हार्दिक बधाई

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