For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तसव्वुरात ... (विजय निकोर)

तसव्वुरात

रुँधा हुआ अब अजनबी-सा रिश्ता कि जैसे

फ़कीर की पुरानी मटमैली चादर में

जगह-जगह पर सूराख ...

 

हमारी कल ही की करी हुई बातें

आज -- चिटके हुए गिलास

के बिखरे हुए टुकड़ों-सी ...

 

कुछ भी तो नहीं रहा बाकी

ठहराने के लिए

पार्क के बैंच को अब

अपना बनाने के लिए

 

फिर क्यूँ फ़कत सुनते ही नाम

मैं तुम्हारा ... तुम मेरा ...

कि जैसे सीनों पर हमारे किसी ने

मार दिया हो पत्थर बड़ा-सा

 

फ़ासलों में खोई हुई

सो गई हैं कब से

थकी-थकी हुई मुस्कराहटें

डूबता है दिल बार-बार

 

और अब वही सनातन सवाल ...

 

जागती रहती हैं क्यूँ अभी भी

बेआवाज़ रुहें

किन मुलाकातों के इन्तज़ार में ?

 

ठहर जाते हैं क्यूँ बरसने के बाद

छ्लनी हुए बादल हमारी छतों पर

अभी भी माज़ी के तसव्वुरात लिए ?

 

हमारे टूटे-बिखरे आवारा ख़्वाबों के

अंधेरों-उजालों की

कोई उमीद, कोई हकीकत बाकी है शायद

 

------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 660

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on March 25, 2014 at 10:23am

// कोमल तंतुओं को दुलार से सहेज कर अपने हाथों बुनी हुई चदरी ... उसके प्रति बनी आत्मीयता कई-कई रिश्तों के लगातार जीवित रहने का निश्छल कारण होती है. यही कारण तो कविता है ! कविता, जो शब्दों के परे होती है ! शब्दों की सीमाओं को तोड़ती हुई होती है !//

 

 इन संज्ञात भावनाओं से रचना के मर्म के साथ आत्मसात होने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सौरभ भाई जी।

कृपया स्नेह बनाए रखें। सादर।

 

 

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 14, 2014 at 11:27am

कोमल तंतुओं को दुलार से सहेज कर अपने हाथों बुनी हुई चदरी हो सकता है टेक्निकली ऐडवांस करघे की बुनी चादर के सामने थोड़ी यों-सी लगे लेकिन उसके प्रति बनी आत्मीयता कई-कई रिश्तों के लगातार जीवित रहने का निश्छल कारण होती है. यही कारण तो कविता है ! कविता, जो शब्दों के परे होती है ! शब्दों की सीमाओं को तोड़ती हुई होती है ! और उम्मीदों के जीने को अर्थ देती है. इसी भाव के अंतर्गत ये पंक्तियाँ प्राणवान हो उठती हैं - 

हमारे टूटे-बिखरे आवारा ख़्वाबों के

अंधेरों-उजालों की

कोई उमीद, कोई हकीकत बाकी है शायद

सादर बधाइयाँ

Comment by vijay nikore on March 11, 2014 at 6:32am

//कैसे भाव ढूँढ लेते है आप ....दिल के इतने संजीदा और क़रीबी भाव ....लाजवाब रचना ...अद्भुत एहसास//

इन भावनाओं से इस रचना को आदर देने के लिए मैं आपका आभारी हूँ, आदरणीया प्रियंका जी। सादर।

Comment by Priyanka singh on March 7, 2014 at 8:45pm

हमारी कल ही की करी हुई बातें

आज -- चिटके हुए गिलास

के बिखरे हुए टुकड़ों-सी ...

फिर क्यूँ फ़कत सुनते ही नाम

मैं तुम्हारा ... तुम मेरा ...

कि जैसे सीनों पर हमारे किसी ने

मार दिया हो पत्थर बड़ा-सा...........

आदरणीय विजय सर .....आपकी लेखनी का कमाल नहीं .....नतमस्तक हूँ मैं ....हर बार लगता है ....कैसे भाव ढूँढ लेते है आप ....दिल के इतने संजीदा और क़रीबी भाव ....लाजवाब रचना ...अद्भुत एहसास ....कुछ पल के लिए मैं खो गयी अपने एहसासों में..... बहुत बहुत बधाई आपको ....इस लाजवाब रचना के लिए ......

Comment by vijay nikore on March 7, 2014 at 3:48pm

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्षमण प्रसाद जी।

Comment by vijay nikore on March 7, 2014 at 3:46pm

//आपकी इस रचना की भाषा में थोड़ा सा बदलाव दिखा मुझे लेकिन भावों की सघनता और बिम्बों का प्रस्तुतिकरण...क्या कहना!

रचना में प्रयुक्त बिम्ब मुझे  बहुत सटीक लगे.

सनातन सवाल...कितने स्पर्शी हैं!

अभिव्यक्ति बड़ी अच्छी लगी आदरणीय...हर शब्द ने हृदय को छुआ//

आपने सही कहा है, इस रचना की भाषा में बदलाव है... मैं सदैव हिन्दी शब्दों का प्रयोग करता था, परन्तु इस बार उर्दु के शब्दों का प्रयोग करने को मन किया।

 

सुन्दर शब्दों से रचना की इतनी सराहना करके मुझको सदैव समान आपने बहुत मान दिया है। मैं आपका हृदयतल से आभारी हूँ, आदरणीया वन्दना जी। धन्यवाद।

 

.

Comment by vijay nikore on March 7, 2014 at 3:40pm

आप मेरी रचना पर आए, और आपने इसको सराहया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय बृजेश जी।

Comment by vijay nikore on March 7, 2014 at 3:38pm

//बहुत सुंदर व् गहन भाव,//

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय जितेन्द्र जी।

Comment by vijay nikore on March 5, 2014 at 9:18am

//एक भावपूर्ण और सुगठित रचना//

आपके यह शब्द मीठे लगे। आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण जी।

Comment by vijay nikore on March 5, 2014 at 9:16am

आदरणीय भाई गिरिराज जी, राख को हम केवल राख समझ कर न फेंक दें...

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"जिजीविषा गंगाधर बाबू के रिटायर हुए कोई लंबा अरसा नहीं गुजरा था।यही दो -ढाई साल पहले सचिवालय की…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी , इस प्रयोगात्मक लघुकथा से इस गोष्ठी के शुभारंभ हेतु हार्दिक…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service