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वो मुर्गे की बांग
वो चिडियों की चीं-चीं
वो कोयल की कूक
अब वो भोर कहाँ ..


वो जांत का घर्र-घर्र
वो चूड़ी की खन-खन
वो माई का गीत
अब वो भोर कहाँ ..


वो कंधे पर हल
वो बैलों की जोड़ी
वो घंटी का स्वर
अब वो भोर कहाँ ..


वो पहली किरन
वो अर्घ-अचवन
वो पार्थी की पूजा
अब वो भोर कहाँ ..


वो माई की टिकुली
वो पीला सिन्दूर
वो पायल की छम-छम
अब वो भोर कहाँ ..


वो मिट्टी का चूल्हा
वो बटुली का अदहन
वो मकुनी की रोटी
अब वो भोर कहाँ ..


गाड़ियों का शोर
बाई की खट-खट
से होती है भोर..


अब वो भोर कहाँ ||
*******************

मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित 

Views: 713

Comment

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Comment by hemant sharma on February 13, 2014 at 12:03am

सुन्दर यथार्त सोचने पर मजबूर करती रचना........... बधाई आदरणीया

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 12, 2014 at 10:45pm

बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीया मीना दीदी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 12, 2014 at 10:22pm

आदरणीया मीना जी , बहुत खूब सूरत गीत रचना की है आपने , सब गाँव के समय की पुरानी बातें आँखों मे झूल गयी , आपको इस रचना के लिये हृदय से बधाइयाँ ॥

Comment by shashi purwar on February 12, 2014 at 9:59pm

सुन्दर रचना है मीना जी हार्दिक बधाई , वो भोर कहाँ सच में पीछे छूट गए उन दिनों की यादें ताजा करती हुई अभिव्यक्ति है जो आज के समय में शयद बहुत पीछे छूट गए है , बधाई सुन्दर अभिव्यक्ति हेतु

Comment by Pankaj Trivedi on February 12, 2014 at 8:48pm

भावपूर्ण रचना के लिए बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 12, 2014 at 7:02pm

आदरणीया मीना पाठक जी अच्छा गीत रचा है आपने बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Shyam Narain Verma on February 12, 2014 at 4:43pm
सुंदर भाव से संजोयी रचना पर बधाई स्वीकारें.....

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