For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भावों के विहंगम

तेरे फड़फड़ाते पंखों की छुअन से

ऐ परिंदे!

हिलोर आ जाती है

स्थिर,अमूर्त सैलाब में

और...

छलक जाता है 

चर्म-चक्षुओं के किनारों से

अनायास ही कुछ नीर.

हवा दे जाते हैं कभी

ये पर तुम्हारे

आनन्द के उत्साह-रंजित

ओजमय अंगार को,

उतर आती है

मद्धम सी चमक अधरोष्ठ तक,

अमृत की तरह.

विखरते हैं जब

सम्वेदना के सुकोमल फूल से पराग,

तेरे आ बैठने से.

चेतना फूंकती है सुगंधी

जड़, जीर्ण और...अचेतन में.

बोल,भावों के विहंगम!

है कहाँ तेरा घरौंदा?

कण-कण में या हृदय में,

या फिर दूर...

यथार्थ के उस यथार्थ में,

जो कई बार अननुभूत रह जाता है.

-विन्दु

(मौलिक/अप्रकाशित)

Views: 1140

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 12, 2014 at 9:33am

बोल,भावों के विहंगम!

है कहाँ तेरा घरौंदा?

कण-कण में या हृदय में,

या फिर दूर...

यथार्थ के उस यथार्थ में,

जो कई बार अननुभूत रह जाता है..............बहुत सुंदर व् गहरे भाव से संजोयी रचना

हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया वंदना जी

Comment by shashi purwar on February 11, 2014 at 11:25pm

वंदना जी सुन्दर रचना है भावों की  सुन्दर अभिव्यक्ति की है आपने

तेरे फड़फड़ाते पंखों की छुअन से

ऐ परिंदे!

हिलोर आ जाती है

स्थिर,अमूर्त सैलाब में

और...

छलक जाता है 

चर्म-चक्षुओं के किनारों से

अनायास ही कुछ नीर.. बहुत खूब बधाई आपको

Comment by MAHIMA SHREE on February 11, 2014 at 9:34pm

बोल,भावों के विहंगम!

है कहाँ तेरा घरौंदा?

कण-कण में या हृदय में,

या फिर दूर...

यथार्थ के उस यथार्थ में,

जो कई बार अननुभूत रह जाता है...... वाह प्रिय वंदना जी बहुत ही सुंदर प्रस्तुति .. कुछ पल को खो गयी ...हार्दिक बधाई आपको


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 11, 2014 at 7:03pm

भाव की महिमा के प्रभावों/या कहें की भाव-खेल  में डूबा-डूबा मन आनंद में बतियाता भाव का ही मूल खोजता..

रचना की अंतर्धारा पसंद आयी

 

एक आध टंकण त्रुटी है उसे सुधार लीजिये 

बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर प्रिय वंदना जी 

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 10, 2014 at 9:30pm

आदरणीय वंदनाजी, इस भावपूर्ण प्रस्तुति के लिये बधाई

Comment by vijay nikore on February 10, 2014 at 9:30pm

सारी रचना में भाव अति गहरे हैं... एक से एक बढ़ कर ... पर निम्न पंक्तियाँ तो एक दम छू गईं

 

//बोल,भावों के विहंगम!

  है कहाँ तेरा घरौंदा?

  कण-कण में या हृदय में,

  या फिर दूर...

  यथार्थ के उस यथार्थ में,

  जो कई बार अननुभूत रह जाता है.//


आपकी रचना को कई बार पढ़ा और आनन्द लिया। हार्दिक बधाई आदरणीया वन्दना जी।

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 10, 2014 at 8:50pm

आदरणीया वन्दना जी , सुन्दर रचना के लिये आप्को बहुत बधाई ॥

Comment by ram shiromani pathak on February 10, 2014 at 4:31pm

विखरते हैं जब सम्वेदना के सुकोमल फूल से पराग, तेरे आ बैठने से. चेतना फूंकती है सुगंधी जड़, जीर्ण और...अचेतन में. /////आहा क्या चित्रण किया है आपने अनुपम। …  हार्दिक बधाई आदरणीया वंदना जी। …… सादर

Comment by coontee mukerji on February 10, 2014 at 3:43pm

वसन्त  रास्ते पर है....आहट दरवाज़े  तक सुनाई दे रही है. युवा भावनाएँ मुखरित हो रही है...मन का  कोयल कुहूक रहा है.

बोल,भावों के विहंगम!

है कहाँ तेरा घरौंदा?

कण-कण में या हृदय में,

या फिर दूर...

यथार्थ के उस यथार्थ में,

जो कई बार अननुभूत रह जाता है......बहुत सारी शुभकामनाएँ सहित .

Comment by Meena Pathak on February 10, 2014 at 2:49pm

बहुत सुन्दर .... बधाई वंदना जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा अष्टक (प्रकृति)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छः दोहे (प्रकृति)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रस्तुति को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"किसी भोजपुरी रचना पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्द्धन किया जाना मुझे अभिभूत कर रहा है। हार्दिक बधाई,…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहे (प्रकृति)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे रचे हैं हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
Shyam Narain Verma replied to Saurabh Pandey's discussion गजल : निभत बा दरद से // सौरभ in the group भोजपुरी साहित्य
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर भोजपुरी ग़ज़ल की प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल : निभत बा दरद से // सौरभ

जवन घाव पाकी उहे दी दवाईनिभत बा दरद से निभे दीं मिताई  बजर लीं भले खून माथा चढ़ावत कइलका कहाई अलाई…See More
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
Feb 1
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
Feb 1

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service