For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक मासूम...

तल्लीनता से जोर-जोर पढ़ रहा था

क-कमल,ख-खरगोश,ग-गणेश।

शिक्षक ने टोका

ग-गणेश! किसने बताया?

बाबा ने...

माँ और पिता को सब कुछ माना

तभी तो सबसे बड़े देव हुए।

नहीं,गणेश नहीं कहते

संप्रदायिकता फैलेगी

जिसे तुम समझो झगड़ा. .विवाद

ग-गधा कहो बेटे।

आस्था भोली थी

बाबा के गणेश,मसीहा और अल्लाह से रेंग

'गधे' में शांति खोजने लगी...।

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 748

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on February 8, 2014 at 12:23am

आदरणीय सौरभ सर:

आपकी बधाई के लिए हार्दिक आभार आदरणीय,पर इस व्यवस्था के लिए क्या कहा जाये!

यह जानकर प्रसन्नता हुई कि रचना का सम्बन्ध सत्य-घटना से है।

आपका बहुत शुक्रिया मेरा आत्मबल बढ़ाने के लिए आदरणीय।

सादर

Comment by Vindu Babu on February 8, 2014 at 12:18am

आदरणीय विजय सर:

रचना की सफलता को आपने इंगित किया...मेरा बहुत उत्साहवर्धन हुआ।

आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

सादर

Comment by Vindu Babu on February 8, 2014 at 12:15am

आदरणीय शरदेन्दु सर:

अपने साधारण सी रचना को इतने आयामों से जोड़ा...रचनाकी सार्थकता को बढ़ाया,आभारी हूँ आदरणीय।

स्नेह बनाये रखें।

सादर

Comment by Vindu Babu on February 8, 2014 at 12:11am

आदरणीय जितेन्द्र जी आपको रचना बढ़िया लगी...मुझे सम्बल मिला।

सादर अभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 7, 2014 at 11:12am

वाह! बहुत सुन्दर सार्थक रचना प्रिय वंदना जी 

आस्था भोली थी

बाबा के गणेश,मसीहा और अल्लाह से रेंग

'गधे' में शांति खोजने लगी...।

बहुत सुन्दर व्यंग के माद्यम से आपने साम्प्रदायिक सोच पर गहरी बात कही है..

हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by Vindu Babu on February 6, 2014 at 4:39am

आदरणीय बृजेश सर, आपकी प्रतिक्रिया पाकर मन प्रसन्न हुआ। आपका बहुत आभार।

Comment by Vindu Babu on February 6, 2014 at 4:36am

आदरणीया मीना दी आप ने रचना पढ़ी,मुझेअच्छा लगा।
सादर धन्यवाद।

Comment by Vindu Babu on February 6, 2014 at 4:26am

शुक्रिया आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी।

Comment by Vindu Babu on February 6, 2014 at 4:25am

आदरणीय गिरिराज जी:

आपने रचना का मर्म समझा,इसके लिए आपका बहुत आभार।

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2014 at 12:52am

कविता आज के ढोंगियों पर सटीक चोट करती है. इसके लिए आप बधाई पात्र हैं.

वैसे आप जानें, कि ये एक सत्य घटना है. अस्सी के दशक के आखिरी सालों में जब देश को ऐसे छद्म विचारकों से खूब-खूब पाला पड़ने लगा था और तब तक वे खूब मुखर हो चुके थे, मध्यप्रदेश सरकार ने ऐसी ही एक सफल पहल की थी. और, अबोध शिशु को गणेश की जगह गधा से समझने लगे.

:-)))

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"स्वागतम"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
19 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
20 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.   मैं ही…"
21 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत शुक्रिया आपका बहुत बेहतर इस्लाह"
22 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service