For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस जीवन में दुख ही दुख है, गृह त्याग चलें वन गौतम नाई।
फिर भी संग छूट नहीं दुख से, घर बैठ सुता सुत नारि रोवाई॥
मन सूख रहा जग आतप से, अब नैन वरीष गये हरियाई।
बहु भांति विचार किया हमने, पथ कंटक झेल रहो जग भाई॥

यदि तृप्त नहीं मन तो भटके, जब तोष हुआ दुख तो मिटता है।
पर तृप्त करें किस भांति इसे, यह तो बिन बात के भी हठता है॥
हठवान बड़ा मन मान नहीं, भगवान कहो तुम ही समझाई।
पद पंकज में जब ध्यान लगे, तब छोड़ रहा मन है हठताई॥

मन की हठता सुन है तब ही, जब ही इसको तुम ढील दियो है।
कहता मन लोलुप जो तुम से, उसके सुर में सुर आप दियो है॥
निज आत्म सुनो सच वो कहता, 'वह ईश्वर अंश' कहे बुध भाई।
अनमोल बड़ा यह जीवन है, इसको नर वीर न व्यर्थ गवाई॥

गह सार रहें जग में डट के, दुख झंझट से अब दूर भगें ना।
जग में जब ईश्वर जन्म दिये, तब ईश दिये कुछ कार्य करें ना॥
बिन कर्म किये घर ईश गये, उनको यह सूरत क्यों दिखलाई?
डर रंच नहीं इस जीवन से, जग में रह कर्म करो कुछ भाई॥

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1011

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 3, 2014 at 11:21pm

भइया, शिल्प और भाषा के स्तर पर यह प्रस्तुति कुछ जमी नहीं.

कृपया प्रयास बनाये रहें.
शुभेच्छाएँ

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 11, 2014 at 2:25pm

आदरनीय जीतेंद्र जी! रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 11, 2014 at 2:24pm

आदरनीय नीरज ! जी रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 11, 2014 at 2:22pm

आदरनीय रमेश जी रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 11, 2014 at 2:20pm

आदरनीय गिरिराज जी रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 11, 2014 at 2:18pm

आदरणीय अखिलेश सर जी रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 11, 2014 at 2:16pm

आदरणीय अरुण भाई जी रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 11, 2014 at 10:35am

मन की हठता सुन है तब ही, जब ही इसको तुम ढील दियो है।
कहता मन लोलुप जो तुम से, उसके सुर में सुर आप दियो है॥
निज आत्म सुनो सच वो कहता, 'वह ईश्वर अंश' कहे बुध भाई।
अनमोल बड़ा यह जीवन है, इसको नर वीर न व्यर्थ गवाई॥

बहुत सुंदर संदेशपरक रचना आदरणीय विन्ध्येश्वरी जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by Neeraj Neer on February 11, 2014 at 9:22am

बहुत ही उत्कृष्ट एवं सुन्दर गीत .. हार्दिक बधाई 

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 10, 2014 at 8:33pm

बहुत ही सुंदर सवैया त्रिपाढीजी सादर बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।  नव वर्ष की हार्दिक…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी । नववर्ष की…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।नववर्ष की हार्दिक बधाई…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।।"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लेखन के विपरित वातावरण में इतना और ऐसा ही लिख सका।…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service