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नवगीत : पड़े रहेंगे बंद कहीं पर शादी के गहने

घूमूँगा बस प्यार तुम्हारा

तन मन पर पहने

पड़े रहेंगे बंद कहीं पर

शादी के गहने

 

चिल्लाते हैं गाजे बाजे

चीख रहे हैं बम

जेनरेटर करता है बक बक

नाच रही है रम

 

गली मुहल्ले मजबूरी में

लगे शोर सहने

 

सब को खुश रखने की खातिर

नींद चैन त्यागे

देहरी, आँगन, छत, कमरे सब

लगातार जागे

 

कौन रुकेगा दो दिन इनसे

सुख दुख की कहने

 

शालिग्राम जी सर पर बैठे

पैरों पड़ी महावर

दोनों ही उत्सव की शोभा

फिर क्यूँ इतना अंतर

 

मैं खुश हूँ, यूँ ही आँखो से

दर्द लगा बहने

--------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by रमेश कुमार चौहान on February 7, 2014 at 7:28pm

बहुत ही सुंदर दस नवगीत पर बधाई

Comment by बृजेश नीरज on February 7, 2014 at 6:53pm

सुन्दर नवगीत आदरणीय! आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 7, 2014 at 2:41pm

सुन्दर नव विषय पर नवगीत बहुत बढ़िया धर्मेन्द्र जी बधाई आपको 

Comment by coontee mukerji on February 6, 2014 at 11:46pm

बहुत गहरी बात कही है.....

शालिग्राम जी सर पर बैठे

पैरों पड़ी महावर

दोनों ही उत्सव की शोभा

फिर क्यूँ इतना अंतर.....आपको हार्दिक बधाई.

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 6, 2014 at 2:43pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , सुन्दर नवगीत के लिये बधाई ॥

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 5, 2014 at 11:46pm

नव गीत ...............और वो भी नए अंदाज में........अच्छा लगा.................

Comment by annapurna bajpai on February 5, 2014 at 11:15pm

बहुत सुंदर रचना , कितनी सच है ये बात ' सब को खुश रखने की खातिर नींद चैन त्यागे देहरी , आँगन , छत , कमरे सब लगातार जागे ' खास कर जगहों पर जहां गेस्ट हाउस आस पास बने है । बधाई आपको 

Comment by कल्पना रामानी on February 5, 2014 at 10:41pm

सब को खुश रखने की खातिर

नींद चैन त्यागे

देहरी, आँगन, छत, कमरे सब

लगातार जागे

 

कौन रुकेगा दो दिन इनसे

सुख दुख की कहने.....गूढ भावों की  बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आदरणीय धर्मेन्द्र जी, इस नवगीत के लिए आपको हार्दिक बधाई

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