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मजदूर हूँ मैं किसान हूँ

मजदूर हूँ मैं किसान हूँ

सबके करीब सबसे दूर हूँ

तपती लू के थपेड़ों ने

झुलसाया मुझे बहुत

अनवरत करता रहा भूख प्यास से व्याकुल

होकर भी अपना काम

कभी पाला कभी कोहरा प्रकति ने भी मुझे नही छोड़ा

कहर बनकर आँसमा बहा ले गया सबकुछ

फिर भी खड़ा हूँ स्थिर

मजदूर हूँ मैं किसान हूँ

हर कोई हरदम मुझ पर जोर अजमा रहा है

दिखती है उन्हे बस

लहलहाती हुई फसलें

नही किसी को नही दिखते

मेरे आँसूं मेरे गम मेरी मेहनत

जो अपने परिवार का काट कर मैंने पेट

तैयार की ये फसल

इसकी सुंदरता पर ही लुभा रहे हैं सब

पर फिर भी मुझे नही मिल रही

दो वक्त की भर पेट रोटी और थोड़ा चैन

मजदूर हूँ मैं किसान हूँ

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by रमेश कुमार चौहान on February 7, 2014 at 7:13pm

लहलहाती हुई फसलें

नही किसी को नही दिखते

मेरे आँसूं मेरे गम मेरी मेहनत

जो अपने परिवार का काट कर मैंने पेट

तैयार की ये फसल -----------वाह

बहुत ही सुंदर बधाई आपको

Comment by coontee mukerji on February 6, 2014 at 11:57pm

इसकी सुंदरता पर ही लुभा रहे हैं सब

पर फिर भी मुझे नही मिल रही

दो वक्त की भर पेट रोटी और थोड़ा चैन

मजदूर हूँ मैं किसान हूँ.....किसानों की विड्म्बना  का सच्चा उद्गार.

Comment by Meena Pathak on February 6, 2014 at 4:52pm

बहुत सुन्दर रचना ... 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 6, 2014 at 2:38pm

आदरणीया प्रज्ञा जी , किसानों की परिस्थिति का सुन्दर चित्रण हुआ है , आपको बधाइयाँ ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 5, 2014 at 11:59am

इसकी सुंदरता पर ही लुभा रहे हैं सब

पर फिर भी मुझे नही मिल रही

दो वक्त की भर पेट रोटी और थोड़ा चैन

मजदूर हूँ मैं किसान हूँ

किसान का जीवन हमेशा आशा और उम्मीदों पर आश्रित होता है, इस बार अच्छी फसल होगी तो अपने पूरे परिवार के लिए यह करना है वो करना है, बस इसी उधेड़बुन में लगा रहता है, अंकुरण से फसल कटाई तक कीटों, अतिवृष्टि,ओलावृष्टि, अग्नि, जंगली जानवरों की चिंता व् उनसे डटकर मुकाबला करना, भूखे रहना, कपकपा देती सर्दियों में खेतो में पड़े रहना, तेज धूप में खड़े रहना, बारिश में कच्चे रास्तों में चलना . इसके पश्चात् फसल आ गई तो ठीक नही तो फिर इन्ही आशा और उम्मीदों पर आश्रित रहना

एक वास्तविकता लिए हुयी बहुत सुंदर रचना, हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया प्रज्ञा जी

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