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वो तन को ढांकते हैं रोशनी से , ( गज़ल ) गिरिराज भन्डारी

1222  1222  122

 

वो तन को ढाँकते हैं रोशनी से

बचा तू ही ख़ुदा इस बेबसी से

बनावट से ज़रा सा दूर रहना  

मै कहना चाहता हूँ , सादगी से

नज़र में मुस्कुराहट, होठ चुप हैं

न जाने कह रहे हैं क्या, हँसी से

मै अब बेरोक बहता हूँ, हवा हो

ये रिश्ता खूब है आवारगी से

वो जुगनूँ जल के, शायद कह रहा है

नहीं डरता, किसी भी तीरगी से

वो जिनकी फ़िक्र मे आज़ार है कुछ

वही डरते रहे बे पर्दगी से

चलो हम गुनगुनायें आज, ग़म को

ज़रा रिश्ता तो जोड़ें आशिकी से

ये दुनिया खूबसूरत भी लगेगी

तू आजिज़ आ कभी जो आजिज़ी से

बहुत ज़ाहिर किया, फिर भी बचा है

कोई कितना कहेगा शाइरी से ?

**************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 10, 2014 at 10:21pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 7, 2014 at 8:10pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। दिली दाद कुबूल करें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 7, 2014 at 8:01pm

आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर इतनी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥ ऐसे ही स्नेह बनाये रखें ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 7, 2014 at 11:04am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० गिरिराज भंडारी जी 

बनावट से ज़रा सा दूर रहना  

मै कहना चाहता हूँ , सादगी से................बहुत सादगी से इतनी सुन्दर बात कह दी .वाह 

वो जुगनूँ जल के, शायद कह रहा है

नहीं डरता, किसी भी तीरगी से................बहुत खूब 

ये दो शेर ख़ास पसंद आये 

बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 6, 2014 at 2:31pm

आदरणीय नादिर खान भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

Comment by नादिर ख़ान on February 6, 2014 at 11:22am

वो तन को ढाँकते हैं रोशनी से

बचा तू ही ख़ुदा इस बेबसी से

बनावट से ज़रा सा दूर रहना  

मै कहना चाहता हूँ , सादगी से

 

आदरणीय गिरिराज जी, बड़ी सादगी और संगीदगी से अपने एक से बढ़कर एक शेर कहे ।.आपको.ढेरों बढ़ाइयाँ  इस उत्कृष्ट रचना के लिए .....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 6, 2014 at 7:45am

आदरनीय सौरभ भाई , ग़ज़ल को आपकी स्वीकृति मिली परीक्षा पास होने जैसी खुशी मिली , ऐसे ही स्नेह और कृपा बनाये रखें , मार्गदर्शन देते रहें ॥ सहारना के लिये हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 6, 2014 at 7:40am

आदरनीय अनिल कुमार भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 6, 2014 at 7:40am

आदर्णीय नीरज प्रेम भाई , आपने  न बोल के बहुत कुछ कहा है , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2014 at 12:42am

आपकी ग़ज़लों में अब जब तब आतशपारा (चिनगारी) सा कौंधता है. यह एक अच्छी बात है. एक अच्छी ग़ज़ल केलिए दिल से दाद कुबूल कीजिये, आदरणीय

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