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जो गुज़र गया वो गुज़र गया ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

11212  11212  11212   11212

 

उसे भूल जा तू न  याद कर, जो गुज़र गया वो गुज़र गया

जिसे तख़्ते दिल में बिठाया था,वो उतर गया तो उतर गया

 

यहाँ आंधियों का वो ज़ोर है ,कि  उजड़ गया है मेरा चमन 

मेरी चाहतें मिली ख़ाक में , मेरा ख़्वाब था जो बिखर गया

 

सुनो हाकिमों मुझे दो सजा , है गुनाह मुझको क़ुबूल सब

मेरा यार मेरा गवाह था , मुझे ग़म है वो ही मुकर  गया

 

ये जो बारिशें हुई अश्क की , ये कहीं से बात भली भी है

तेरा ग़म पिघल के जो बह गया, तेरा अक़्स भी है निखर गया 

 

तेरा हर सितम है अजीबतर , मेरा हौसला भी अज़ीमतर

मुझे उस तरफ से उजाड़ा जब, तो मै इस तरफ से सँवर गया

************************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

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Comment

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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 11, 2014 at 11:54am

छोटे भाई , खूबसूरत गज़ल की हार्दिक बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 10, 2014 at 8:19pm

आदरणीय गुमनाम भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका ह्र्दय से आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 10, 2014 at 8:17pm

आदरणीया सरिता जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 10, 2014 at 8:16pm

आदरणीया मीना जी , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन कर ने के लिये आपका ह्र्दय से आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 10, 2014 at 8:15pm

आदरणीय अरुण भाई , आपकी सराहना मेरे लिये किसी तमगे से कम नही है , आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 10, 2014 at 8:13pm

आदरणीया वन्दना जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 10, 2014 at 6:43pm

ये जो बारिशें हुई अश्क की , ये कहीं से बात भली भी है

तेरा ग़म पिघल के जो बह गया, तेरा अक़्स भी है निखर गया

बहुत खूब  है सर जी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by Sarita Bhatia on January 10, 2014 at 4:41pm

वाह वाह वाह 

Comment by Meena Pathak on January 10, 2014 at 1:10pm

गज़ब गज़ब .... बहुत खूब आदरणीय .. आनंद आ गया पढ़ के | सादर नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on January 10, 2014 at 9:16am

तेरा हर सितम है अजीबतर , मेरा हौसला भी अज़ीमतर

तू ने उस तरफ से उजाड़ा जब, तो मै इस तरफ से सँवर गया.....................वाह.................

उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाइयाँ......................

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