11212 11212 11212 11212
उसे भूल जा तू न याद कर, जो गुज़र गया वो गुज़र गया
जिसे तख़्ते दिल में बिठाया था,वो उतर गया तो उतर गया
यहाँ आंधियों का वो ज़ोर है ,कि उजड़ गया है मेरा चमन
मेरी चाहतें मिली ख़ाक में , मेरा ख़्वाब था जो बिखर गया
सुनो हाकिमों मुझे दो सजा , है गुनाह मुझको क़ुबूल सब
मेरा यार मेरा गवाह था , मुझे ग़म है वो ही मुकर गया
ये जो बारिशें हुई अश्क की , ये कहीं से बात भली भी है
तेरा ग़म पिघल के जो बह गया, तेरा अक़्स भी है निखर गया
तेरा हर सितम है अजीबतर , मेरा हौसला भी अज़ीमतर
मुझे उस तरफ से उजाड़ा जब, तो मै इस तरफ से सँवर गया
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
छोटे भाई , खूबसूरत गज़ल की हार्दिक बधाई ।
आदरणीय गुमनाम भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका ह्र्दय से आभारी हूँ ॥
आदरणीया सरिता जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार
आदरणीया मीना जी , गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन कर ने के लिये आपका ह्र्दय से आभारी हूँ ॥
आदरणीय अरुण भाई , आपकी सराहना मेरे लिये किसी तमगे से कम नही है , आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीया वन्दना जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
ये जो बारिशें हुई अश्क की , ये कहीं से बात भली भी है
तेरा ग़म पिघल के जो बह गया, तेरा अक़्स भी है निखर गया
बहुत खूब है सर जी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
वाह वाह वाह
गज़ब गज़ब .... बहुत खूब आदरणीय .. आनंद आ गया पढ़ के | सादर नमन
तेरा हर सितम है अजीबतर , मेरा हौसला भी अज़ीमतर
तू ने उस तरफ से उजाड़ा जब, तो मै इस तरफ से सँवर गया.....................वाह.................
उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाइयाँ......................
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