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ग़ज़ल - बज़्म थी तारों की उसमें चाँद का पहरा भी था

२१२२      २१२२      २१२२     २१२

बज़्म थी तारों की उसमें चाँद का पहरा भी था

धूम थी रानाइयों की दिल मेरा तन्हा भी था

 

इक नदी थी नाव भी थी और था मौसम हसीं

साथ तुम थे बाग़ गुल थे इश्क मस्ताना भी था

 

यार की गलियों  गया मैं फिर से लेकर आरज़ू

कुछ पुराने ख्वाब थे हर सिम्त वीराना भी था

 

कैसे - कैसे लोग मिलते हैं यहाँ देखो सही

बात में चीनी घुली थी दिल मगर काला भी था

 

वो अज़ब ही दौर था हर बात पर हँसते थे हम

ये जहाँ  गोया लतीफ़ा मस्त बचकाना भी था

अमित दुबे

मौलिक व अप्रकाशित

(संशोधित)

Views: 864

Comment

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Comment by Meena Pathak on January 9, 2014 at 12:30pm

क्या बात है, बहुत खूब ... बधाई 

Comment by Shyam Narain Verma on January 9, 2014 at 11:21am
बहुत खूब , आपको हार्दिक बधाइयाँ .....
Comment by savitamishra on January 9, 2014 at 10:46am

बहुत सुन्दर

Comment by अमित वागर्थ on January 7, 2014 at 8:36pm

सभी गुणीजनों को रचना अनुमोदन हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद .

Comment by अमित वागर्थ on January 7, 2014 at 8:33pm

आदरणीय योगराज सर विस्तृत मार्गदर्शन हेतु आपका हार्दिक आभार,मैं जल्द ही ग़ज़ल को दुरुस्त करने का प्रयास करता हूँ,आगे भी स्नेह एवं आशीर्वाद बनाये रखें ....सादर 

Comment by MAHIMA SHREE on January 7, 2014 at 7:37pm

बज़्म थी तारों की उसमें चाँद का पहरा भी था

धूम थी रानाइयों की दिल मेरा तन्हा भी था.... बढिया हार्दिक बधाई आपको ..

Comment by Priyanka singh on January 7, 2014 at 4:08pm

बहुत खूब अमित जी .....


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 7, 2014 at 12:20pm

भाई अमित कुमार जी, ग़ज़ल सुन्दर हुई है जिसके लिए आपको बधाई देता हूँ. इन तीन अश'आर पर आपकी तवज्जो दरकार है:

//यार की गलियां गया मैं फिर से लेकर आरज़ू
कुछ पुराने ख्वाब थे हर सिम्त वीराना भी था// पहले मिसरे में शब्द "गलियां" अटपटा सा लग रहा है. क्या यहाँ "गलियों" ज़यादा बेहतर न रहता ?  

 
//कैसे - कैसे लोग मिलते हैं यहाँ देखो सही
बात में चीनी घुली थी दिल मगर कला भी था // दूसरे मिसरे में "कला" शायद " "काला" की जगह गलती से लिखा गया है.  इसे दुरुस्त कर लें.     

//वो अज़ब ही दौर था हर बात पर हँसते थे हम
ज़िन्दगी गोया लतीफ़ा मस्त बचकाना भी था // "ज़िंदगी" (स्त्रीलिंग) के साथ "लतीफ़ा", "मस्त", "बचकाना" और "था" (सभी पुल्लिंग) के प्रयोग से लिंगदोष आ गया है, इस ओर ध्यान दें.   

Comment by Sarita Bhatia on January 7, 2014 at 9:21am

बहुत उम्दा 

Comment by vijay nikore on January 7, 2014 at 9:18am

इस अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

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