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गज़ल - जाग उठी सड़कें

जाग उठी सड़कें  उन्हें बस  सच बयानी चाहिए

कह  दो  संसद  से  न  कोई   लंतरानी  चाहिए

 

देख तो ! मैं बिक गया उसकी वफ़ा के नाम पर

ऐ  तिजारत ! अब  तुझे  नज़रें  झुकानी चाहिए

 

मैं  बना  दूँ  अपनी पेशानी पे सजदे  की लकीर

तू  बता तुझको  दिलों पर  हुक्मरानी  चाहिए ?

 

धूप  में जलना  पड़ेगा फिर सुबह से शाम तक

जिद  है बच्चों  की उन्हें  कुछ जाफरानी चाहिए

 

प्यार है तो आ मेरे माथे पर अपना नाम लिख

जिक्र  जब  मेरा  हो  तेरी  बात  आनी  चाहिए

 

कर  खसारा  मैं  भरे  बाज़ार  से  उठने को  हूँ

कह   रहे   हैं   लोग   थोड़ी   बेइमानी  चाहिए

 

मैं भी चुप हूँ तू भी तन्हा सोच मत पत्थर उठा

तु  भी  खुश, मेरे  लहू  को  भी  रवानी  चाहिए
.
.

अरुन श्री !

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by शिज्जु "शकूर" on January 4, 2014 at 8:00pm

भाई अरुणजी बेहतरीन ग़ज़ल है हरेक शेर बेहतरीन हुआ है दिली दाद कुबूल करें

Comment by coontee mukerji on January 4, 2014 at 5:24pm

प्यार है तो आ मेरे माथे पर अपना नाम लिख

जिक्र  जब  मेरा  हो  तेरी  बात  आनी  चाहिए

 

कर  खसारा  मैं  भरे  बाज़ार  से  उठने को  हूँ

कह   रहे   हैं   लोग   थोड़ी   बेइमानी  चाहिए

 

मैं भी चुप हूँ तू भी तन्हा सोच मत पत्थर उठा

तु  भी  खुश, मेरे  लहू  को  भी  रवानी  चाहिए.......बहुत सुंदर.

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on January 4, 2014 at 10:57am

वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह बहुत खूब!! जय हो, क्या फरमाया है जनाब!!! बहुत बधाई, नूतन वर्ष की मंगल कामनाएं।

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