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गरीब का पेट

बड़ा जालिम होता है
गरीब का पेट
नहीं देता देखने
सुन्दर-सुन्दर सपने
गरीबी के दिनों में
छीन लेता है वह
सपना देखने का हक
जब कभी
देखना चाहती है आंख
सुंदर सा सपना
मागने लगता है पेट
एक अदद सूखी रोटी
आंख ढूंढ ने लगती है तब
इधर उधर बिखरी जूठन
और फैल जाते हैं हाथ
मागने को निवाला
गरीबी के दिनों में
दूसरों के सम्मुख फैले हुए हाथ
सपना देखती आंख के
मददगार नहीं होते कभी
इसलिए भूखे पेट
कभी नही होता आंख को
सपने देखने का साहस
सपना देखने के लिए
जरूरी है पेट का भरा होना

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 412

Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 2:31pm

एक सार्थक प्रयास हुआ भाईजी..

शुभकामनाएँ

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2013 at 7:32pm

सपना देखने के लिए
जरूरी है पेट का भरा होना....... बिलकुल सही आदरणीय .धामी जी ...बहुत -२ बधाई आपको ..  यथार्थ तो जीवन का यही हैं .. जिन्हें एक जून की रोटी भी नसीब से ही मिलती हैं ..  जिन्दगी में  कुछ ना वे सोच पाते है ना कर पाते हैं ..फिर  सपना तो दूर की कौड़ी ही है .. सादर

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 26, 2013 at 2:23pm

लक्ष्मण भाई , गरीब की व्यथा को सुंदर ढंग से प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 26, 2013 at 11:12am

धामी जी

मनभावन पंक्तियों के लिए आपको साधुवाद  i

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2013 at 6:58am

सभी प्रबुद्ध जनों को प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 25, 2013 at 10:49pm

//सपना देखने के लिए
जरूरी है पेट का भरा होना//

यथार्थ को बयां करती रचना, सच! भूखे पेट तो सपना भी नहीं देखा  जा सकता, बधाई स्वीकारें आदरणीय लक्ष्मण जी

Comment by coontee mukerji on December 25, 2013 at 9:29pm

गरीब को क्या चाहिये रोटी,कपड़ा,और मकान.

Comment by बृजेश नीरज on December 25, 2013 at 8:11pm

अच्छी है! आपको हार्दिक बधाई!

सपना सभी देखते हैं, भले ही रोटी का देखें!

Comment by Satyanarayan Singh on December 25, 2013 at 7:28pm

आ. लक्षमण जी सुन्दर रचना हार्दिक बधाई,

     सचमुच गरीबी एक अभिशाप है,  आपकी रचना में समाहित भाव इसी ओर इंगित कर रहे है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 25, 2013 at 4:39pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , सच बयान किया है आपने , भूखे पेट को रोटी के सिवा कुछ नही सूझता ॥ सुन्दर रचना के लिये बधाई ॥

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