बहर ... २२२ २२२ २२
वो जब से सरकार हुए हैं
सब कितने लाचार हुए हैं
जन सेवा अब नाम ठगी का
सपनोँ के व्यापार हुए हैं
धोखे देते बन के साधू
ऐसे ठेकेदार हुए हैं
मज़हब के भी नाम पे देखो
कितने अत्याचार हुए हैं
जो थे अब तक झुक कर चलते
वो अबकी खुददार हुए हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
इस भाव पूर्ण गजल के लिए बधाई आपको । |
अहा ! इसे कहते हैं सादगी में क़यामत का असर ...गज़ब का कलाम हर शेर कामयाब ज़िन्दाबाद ...आज के दौर की आईना ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद आ. महिमा श्री जी आपकी कीर्ति चतुर्दिक फैले , नव वर्ष की मंगल कामनाएं !!
धोखे देते बन के साधू
ऐसे ठेकेदार हुए हैं.........वर्तमान समय में यही सब हो रहा है
जो थे अब तक झुक कर चलते
वो अबकी खुददार हुए हैं........अवसरवादियों पर कटाक्ष
कटु सत्यता ली हुयी, लाजवाब गजल पर बधाई स्वीकारें आदरणीया महिमा जी
आदरणीया महिमा जी,
बहुत सुन्दर गज़ल कही है आपने ,अनेकों बधाइयाँ
jo ab tak jhukkar chalte the
vo sare khuddar huye hain / ............bhi ho sakta tha .....
wah wah wah......
वाह आदरणीया महिमा जी बेहतरीन रवां ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये
जो थे अब तक झुक कर चलते
वो अबकी खुददार हुए हैं...........वाह क्या बात है.
.......
आदरणीया महिमा जी , बहुत सुन्दर गज़ल कही है आपने , आपको अनेकों बधाइयाँ ॥
आभार आदरणीय अनुराग जी .. सादर
सुन्दर ग़ज़ल हेतु बधाई
सादर
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