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वही मै दे पाया ! … नवगीत !

वही मै दे पाया !   … नवगीत !
----------------------------------
जो था मेरे पास 
वही मै दे पाया
 
अंतर में खुशियों का सोता 
होठों पर मुस्कान 
चहरे पर है इंद्रधनुष और 
हाव-भाव में शान 
 
इठलाता मधुमास 
तुम्हारी खातिर लाया  …ज़ो था …वही मै दे पाया  
 
मन में था अवसाद 
अधर भी सूखे-सूखे 
नयन किसी दर्शन को 
जैसे  प्यासे -भूखे 
 
घुटन  नीर आभास 
यही बस लिख पाया …ज़ो था …वही मै दे पाया 
 
देने को तो दे सकता 
पर क्या है अपना
एक बार तो पूंछू 
उससे उसका सपना 
 
अपने-अपने वृत्त 
समय ने समझाया …ज़ो था …वही मै दे पाया 
 
जो था मेरे पास 
वही मै दे पाया ! …ज़ो था …वही मै दे पाया  
------------------------------------------------
अविनाश बागडे     मौलिक/अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by AVINASH S BAGDE on December 25, 2013 at 11:11am
Comment by vandana on December 25, 2013 at 8:02am

बहुत सुन्दर नवगीत आदरणीय अलग अलग मनोभावों को समेटे हुए 

Comment by coontee mukerji on December 24, 2013 at 10:34pm

देने को तो दे सकता 
पर क्या है अपना
एक बार तो पूंछू 
उससे उसका सपना.........बहुत सुंदर नवगीत.
Comment by annapurna bajpai on December 24, 2013 at 6:25pm

आ0 अविनाश जी सुंदर नवगीत के लिए आपको हार्दिक बधाई । 

Comment by AVINASH S BAGDE on December 24, 2013 at 5:00pm
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 24, 2013 at 11:32am

अविनाश जी

सुन्दर गीत के लिए आपको बधाई i

Comment by AVINASH S BAGDE on December 24, 2013 at 5:58am

आद. शिज्जु शकूर जी बहुत बहुत आभार ..

Comment by AVINASH S BAGDE on December 24, 2013 at 5:57am

hriday ki gaharaiyon se aabhar aadarniy Sushil Sarna ji/is rachana ne aapako sparsh kiya...बहुत बहुत आभार ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 23, 2013 at 8:50pm

आदरणीय अविनाश सर इस खूबसूरत रचना के लिये दिली दाद कुबूल करें

Comment by Sushil Sarna on December 23, 2013 at 7:43pm
देने को तो दे सकता 
पर क्या है अपना
एक बार तो पूंछू 
उससे उसका सपना 
 
अपने-अपने वृत्त 
समय ने समझाया …ज़ो था …वही मै दे पाया 
 
जो था मेरे पास 
वही मै दे पाया ! …ज़ो था …वही मै दे पाया  ......antrman ke aihsaason kee khoobsoorat abhivyakti...is manohaaree rachna ke liye haardik badhaaee

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