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बहुत खूबसूरत नवगीत आदरणीय श्रीमान जी।
इस सुन्दर गीत को कई कई बार पढ़ा..पर टिप्पणी के लिए क्रमवार इस सुन्दर नवगीत तक पहुँच पाना आज ही संभव हो सका.
मुखड़े की पंक्तियाँ ही मन में पल रहे कई सुकोमल स्वप्नों के खिल उठने की ताजगी भरी आस जगाती हैं... और पाठक को बाँध लेती हैं
//धुआँ भरा है अहसासों में
गुम आहट है
फिर भी देखो
एक झिझकती कोशिश तो की !
भले अधिक मत खुलना
तुम, पर
कुछ सुन जाना//...........इन अर्थवान शब्दों के अन्तर्निहित भावों की नजाकत को बस महसूस ही किया जा सका है..बहुत सुन्दर
निभते हैं
टेबुल-मैनर में रिश्ते सारे.................फोर्मेलिटीज़ के आवरण की प्रभावशाली प्रस्तुति ..वाह !
अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना.................इस बंद का तो शब्द शब्द जैसे प्रिय से बात करता सा है.
मन की अन्तःभावदशा को, अपने प्रिय से कुछ कहने और कुछ सुनने की इच्छा को, कशिश को सुन्दर शब्द मिले हैं और नए साल की धूप के अपनेपन में प्रिय स्वप्नों के गेंदों सम खिल उठने की बहुत खूबसूरत आस को सहज बिम्ब में संजोया है .
इस सुकोमल सुन्दर नजाकत भरे नवगीत के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय
सादर.
आदरणीय अशोकभईजी, आपको प्रस्तुत नवगीत रुचिकर लगा यह मेे ली सौभाग्य की बात है.
सादर
आदरणीय गुणशेखरजी, आपकी मुखर सदाशयता के लिए मैं हृदयतल से आभारी हूँ. आपने जिस खुले मन और उत्फुल्ल हुई तार्किकता से इस रचना को मान दिया है. वह आपकी समृद्ध समझ का परिचायक है.
आपका सहयोग बना रहे आदरणीय.
सादर
भाई सलीमरज़ाजी, आपको नये साल की हार्दिक शुभकामनाएँ.
रचना आपके मुआफ़िक हो पायी है, इसकी मुझे बेहद खुशी है.
हृदय से आभार, भाईजी.
परम आदरणीय सौरभजी आपकी लेखनी को सादर नमन,
इस नवगीत को बार बार पढने को मन करता है. यही इस नवगीत की विशेषता है. गीत के हर बंद वैसे आपने आप में ख़ास है किन्तु निम्नवत पंक्तियाँ कुछ ज्यादा ही रुचिकर लगी है.
अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना..
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .
सादर धन्यवाद
आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, विनय पूर्ण भाव लिए बहुत सुन्दर नवगीत के लिए सादर बधाई स्वीकारें.
प्रिय सौरभ जी तुम्हारे नवगीत को पढ़ते हुए बहुत सुखद अनुभूति हुई. अपने अनूठे बिम्बों और प्रतीकों के साथ 'नए साल की धूप' तन-मन को पुलकित कर गई.सधा शिल्प और भाषा का मार्दव मन को मोहता है.
"बिजली गुल है,
खिड़की-पल्ले तनिक हटाना..", और
"आँखों को तुम /और मुखर कर नम कर देना/ इसी बहाने होंठ हिलें तो/ सब कह जाना../ नये साल की धूप तनिक/ तुम लेते आना.." .. जैसे सहज-सरल शब्दों के माध्यम से गीतकार प्रकृति प्रिया से सीधे -सीधे अपनी मानिनी मानवीय प्रिया तक की भावयात्रा में अपने मन की हर गाँठ खोल देता है. तुम्हारे मन के भीतर बैठे इस गीतकार को बहुत-बहुत बधाई!
-डॉ. गुणशेखर
आदरणीय सौरभ जी..
आपकी कविता ''नए साल की धूप'' ठंड मे भी गर्माहट का अहसास करा दी .. कई बार गीत को पढ़ डाला ..ब हुत खूबसूरत गीत के लिए ;मुबारकबाद
आदरणीय कुन्तीजी, आपकी प्रशंसा मेरे लिए वाकई अर्थ रखती है.
सादर धन्यवाद
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