दिन भर के सफर का
थका हुआ सूरज, मानो..
ज़मीं की सेज़ पर,
लहरों के झूले में,
चाँदनी की चादर ओढ़े
सबकुछ भूल के,
सोने जा रहा हो,
लहराते हुये लहरो में,
मानो,
कह रहा है
मेरे दोस्तो
विदा, फिर मिलेंगे सुबह...
मैं चला
होती है रात विश्राम को,
थकान मिटाने को,
चलें सफर में
रात के साथ...
पिछला ग़म भुलाने को
चलो
सुबह एक नई शुरूआत करेंगे
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सौरभ सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया, एक छोटी सी कोशिश की है
आपकी कोई पहली अतुकान्त कविता देख रहा हूँ, भाई शिज्जूजी.
बहुत-बहुत बधाइयाँ
मेरी रचना को मान देने के लिये आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया उम्मीद है आप सभी का स्नेह यूँ ही बना रहेगा
सादर,
बहुत सुन्दर...
पिछले दिन के ग़मों के बोझ को उतार, विश्रांति पा .....हर सुबह एक नयी शुरुवात ही हो...
हार्दिक बधाई
सुंदर प्रस्तुति शिज्जू भाई!आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
आदरनीय शिज्जू भाई
सुंदर भावों से संजोयी, जीवन की नई सुबह में आशा की किरण, हृदय से बधाई
आदरनीय शिज्जू भाई , आशा की किरण दिखाती आपकी सुन्दर रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
सुंदर कविता , बधाई आपको आ० शिजू शकूर जी ।
होती है रात विश्राम को,
थकान मिटाने को,
चलें सफर में
रात के साथ...
पिछला ग़म भुलाने को
चलो
सुबह एक नई शुरूआत करेंगे
और हर उस नई सुबह के साथ जीवन में एक नया दिन जुड़ जाता है जीवन कर्म, कुदरत कर्म निरंतर चलता रहता है ,हर दिन का सूर्य आशावादी ऊर्जा भरता जाता है ......आपकी रचना बहुत अच्छी लगी शिज्जू भाई बधाई स्वीकार करें
सुबह एक नई शुरूआत करेंगे...
सुंदर प्रस्तुति शिज्जू भाई!
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