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गज़ल -मेरे पीछे रुधन क्यों है

1222 1222

मेरे पीछे रुधन क्यों है
ये अश्कों का बज़न क्यों है

सजाया है जनाजे पर
उधारी का कफ़न क्यों है

कमायी पाप से दौलत
न काफी फिर ये धन क्यों है

बजा कर लाश पर बाजे
जगाने का जतन क्यों है

चले गोरे गये लेकिन
रुआँसा ये वतन क्यों है

हजारों घर जलाकर भी
ये माथे पर शिकन क्यों है


मौलिक एंव अप्रकाशित
उमेश कटारा

Views: 971

Comment

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Comment by umesh katara on December 11, 2013 at 7:23pm

आदरणीय मदन मोहन जी हार्दिक आभार

Comment by Madan Mohan saxena on December 11, 2013 at 5:29pm
बहुत सार्थक भाव.
Comment by Akhilesh Dubey on December 11, 2013 at 11:14am

aadarniya umesh ji,

atiuttam rachna, atyant marmik..

Comment by umesh katara on December 11, 2013 at 8:00am

आदणीया Vandana ji हौसला अफजाई के लिये

आपका आभार 

Comment by umesh katara on December 11, 2013 at 7:59am

आदरणीय नादिर खान साहब गज़ल की पसन्दगी के लिये आभार

Comment by umesh katara on December 11, 2013 at 7:58am

आदरणीय Atendra kumar singh ji apka tahe dil se shukriya

Comment by umesh katara on December 11, 2013 at 7:57am

आदरणीया Coontee mukerji आपका हार्दिक आभार 

Comment by vandana on December 11, 2013 at 7:41am

बजा कर लाश पर बाजे
जगाने का जतन क्यों है

बढ़िया कहन है आदरणीय 

Comment by ram shiromani pathak on December 11, 2013 at 12:13am

सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय उमेश जी। । हार्दिक बधाई आपको 

Comment by नादिर ख़ान on December 10, 2013 at 10:40pm

कमायी पाप से दौलत
न काफी फिर ये धन क्यों है...

सच कहा जब तक पाप का घड़ा नहीं  फूटता नाकाफी ही लगता है । 

पतन इंसान का तो जारी है ... सफर में और गिरना बाकी है 

बहुत अच्छी गज़ल है आदरणीय उमेश जी ..

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