कैसे सुनाएँ दास्ताँ तरसी निगाह की ।
दौरे ग़मों में किस तरह हमने पनाह की ।
दर्दे सितम प्यार में मिलते रहे हमे ,
चुपचाप सह गए कभी हमने न आह की ।
बीती फकत जो ज़िन्दगी हमने किया नही ,
हमें सजा भी मिल गयी ऐसे गुनाह की ।
एक एक करके हसरतें दम तोड़ती गयीं ,
हमको मिला वही कभी जिसकी न चाह की ।
तूफाँ कभी न आया शायद मेरी डगर ,
उसकी डगर में ज़िन्दगी हमने तबाह की ।
हाले बयान ये जो महफ़िल में कर दिया ,
ताली बजा के सबने तो वाह वाह की ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज 'प्रेम'
Comment
गलती के लिए क्षमा चाहती हूँ वीनस जी.
आदरणीया राजेश कुमारी जी से मुआफ़ी के साथ अर्ज़ करना चाहता हूँ कि यह ग़ज़ल २२१२ २२१२ २२१२ १२ अर्कान के निकट नहीं है
यह ग़ज़ल बह्र ए मुजारे के एक उप बह्र के करीब है जिसका अर्काय यह है - २२१ / २१२१ / १२२१ / २१२
इस अर्कान पर ओबीओ में कई तरही मुशायरे हो चुके हैं और इसी अर्कान पर तक्तीअ करते हुए कई मिसरे पूरी तरह बह्र में हैं, थोड़ी सी मशक्कत से ग़ज़ल पूरी तरह बह्र में हो जायेगी, ये सारे मिसरे पूरी तरह बह्र में हैं -
कैसे सुनाएँ दास्ताँ तरसी निगाह की ।
चुपचाप सह गए कभी हमने न आह की ।
बीती फकत जो ज़िन्दगी हमने किया नही ,
हमको सजा भी मिल गयी ऐसे गुनाह की ।
एक एक करके हसरतें दम तोड़ती गयीं ,
हमको मिला वही कभी जिसकी न चाह की ।
उसकी डगर में ज़िन्दगी हमने तबाह की ।
बाकी के मिसरे भी इसी अर्कान के आस पास हैं और बहुत आसानी से दुरुस्त हो जायेंगे
सादर
आप के भाव को सलाम ... राजेश कुमारी जी ने नब्ज़ पर हाथ रखा है ... गौर कीजियेगा
सादर
बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई..................
नीरज जी आपके मतले के अनुसार आपकी बह्र ---२२१२ २२१२ २२१२ १२ है उसी के अनुसार सभी शेर साध कर देखें ,भाव कहन बहुत सुन्दर है ठीक करंगे तो ये ग़ज़ल निखर उठेगी ,,,फिलहाल दाद कबूलें
एक एक करके हसरतें दम तोड़ती गयीं ,
हमको मिला वही कभी जिसकी न चाह की..........बहुत खूब
आदरणीय नीरज प्रेम भाई , पूरी रचना मे बहुत खूबसूरती से बातें कही है आपने , आपको हार्दिक बधाइयाँ !!!! बह्र के विषय मे ज़रा सोच के देख लीजिये , जो आपने लिखा है ऊपर क्या सही है ? सभी मिसरों की तकतीअ कर के भी देख लें !!!!! सादर !!!!!
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