For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खेल शब्दो का अजीब नही होता ???

कभी कभी
शब्दो के साथ
खेलने वाले ही

भूल जाते हैं
शब्दो की बाजीगरी
रात-दिन जो
रहते हैं शब्दो के बीच
कभी कभी उनको ही
नही मिलते शब्द
कहने को अपनी बात
जाहिर करने को
अपने जज्बात ....
ऐसा लगता है मानो
रूठ गया हो खुदा भी हमसे 
उनकी ही तरह
जैसे वो रूठे हैं हमसे
सिर्फ कुछ
शब्दो के कारण …
एक ख्याल
बार-बार आता है
मन के छोटे से घर में
कि क्यों नही होता ऐसा
कि जज्बात को
बांधे ही न शब्दो में
भावनाओ का बदला
भावनाओ से ……
जैसे सुना है
एक डायलॉग कि
खून का बदला खून
क्या वैसे ही
नही हो सकता
कि शब्दो की
जरूरत ही न पड़े
तब जब अक्सर
पिघलना चाहती हो
भावनाए  ……
तब जब दर्द
आंसुओ में
घुलना चाहता हो  …
कोई किसी से
मिलना चाहता हो ....
क्यों पड़ती है
जरूरत शब्दो की
मोहबत के दरमियाँ
कुछ ऐसा क्यों नही होता
कि सुन ले एक दिल ही
दूसरे दिल की  दास्ताँ
बिना शब्दो का जाल बुने
क्योंकि अक्सर
ऐसा होता है कि
शब्दो के चक्कर में
फंस जाती हैं भावनाये
ढक जाते हैं जज्बात
आधे झूठ और
आधे सच के नीचे
और तब रह जाता है
इंसान अपने ही शब्दो के
बीच में फंसकर
और तब समझ ही
नही पाता वो कि
आखिर सच क्या है
और झूठ क्या है
वो भावनाएं झूठी थी
या ये शब्द झूठे हैं

खेल शब्दो का
अजीब नही होता ???

स्वयं लिखित व अप्रकाशित रचना
सोनम सैनी

Views: 775

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sonam Saini on December 30, 2013 at 12:35pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2013 at 11:49pm

रचनाकर्म की सार्थकता है कि तथ्य संप्रषित हं..

बधाई स्वीकारें .. .

Comment by Sonam Saini on December 9, 2013 at 4:13pm

सभी को सोनम का सादर नमस्कार …… आप सभी ने मेरी छोटी सी कोशिश को इतना सराहा इसके लिए मैं दिल से आभारी हूँ और आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद करती हूँ ! रचना की गलतियों को सुधार कर आगे बेहतर लिखने कि कोशिश करूंगी।। धन्यवाद 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 7, 2013 at 5:07pm

सुन्दर रचना बढ़िया सोच बधाई आपको

Comment by विजय मिश्र on December 7, 2013 at 4:09pm
शब्दों के ही खेल अजीब होते हैं ,शब्दों ने ही महाभारत रचाया था | शब्द अभिव्यक्ति है किन्तु मन्थन कर इसके मूल तक पहुँचने के पश्चात ही व्यक्त हो |रहा प्रेम तो इसके संवाद तो घंटों निःशब्द होते हैं और अभिव्यक्तियाँ उजागर होतीं रहतीं हैं| सुंदर रचना , साधुवाद |
Comment by Parveen Malik on December 7, 2013 at 11:03am
कभी कभी रचना भी इतना दिल को छू जाती है कि तारीफ करने को शब्द ही नहीं मिलते .. शब्दों का ही खेल है !
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 7, 2013 at 8:46am

शब्दो के चक्कर में
फंस जाती हैं भावनाये
ढक जाते हैं जज्बात
आधे झूठ और
आधे सच के नीचे
और तब रह जाता है
इंसान अपने ही शब्दो के
बीच में फंसकर
और तब समझ ही
नही पाता वो कि
आखिर सच क्या है
और झूठ क्या है
वो भावनाएं झूठी थी
या ये शब्द झूठे हैं

,सच! में एक वास्विक सत्य लिए हुयी है, इन्सान अपने जीवन में कई बार शब्दों के भंवर में फस कर रह जाता है, बोखला जाता है, समझ नहीं आता क्या सच है? क्या झूठ ?, आपकी रचना में सुंदरता से चिंतन हुआ है,  हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया सोनम जी

Comment by Meena Pathak on December 6, 2013 at 2:40pm

बहुत सुन्दर रचना है सोनम जी , बधाई आप को 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 6, 2013 at 2:13pm

बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीया सोनम जी .....सादर बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on December 6, 2013 at 9:28am

सुन्दर चिंतन हुआ है.बधाईयाँ..........

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service