!!!! टूटते विश्वास को !!!! नवगीत !!!!
किस तरह से
मै बचा लूँ
टूटते विश्वास को
लोग कहते,
भूल जाऊँ
आँख मून्दे ,
कान रून्धे
चुप रहूँ मै , बस सहूँ मै,
इस मिले संत्रास को
जब नज़र में
हो उपेक्षा
और अच्छे
की अपेक्षा
क्यों न मानूँ ,आज अन्दर,
से हुये आभास को
भूत की यादें
सुखद है
दिल मगर कब
मानता है
कब तलक मानूँ सहारा
हास को परिहास को
भूलना मुश्किल बहुत है
पर असम्भव
तो नही है
नेह झूठे, और झूठे
स्वप्न के आकाश को
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
बहुत सुंदर नवगीत.
जब नज़र में
हो उपेक्षा
और अच्छे
की अपेक्षा
क्यों न मानूँ ,आज अन्दर,
से हुये आभास को.........साधुवाद.
सादर/कुंती
जब नज़र में
हो उपेक्षा
और अच्छे
की अपेक्षा
क्यों न मानूँ ,आज अन्दर,
से हुये आभास को
बहुत बढ़िया नवगीत आदरणीय गिरिराज सर
आदरणीया अन्नपूरणा जी , नवगीत को आपका आशीर्वाद मिला , बहुत खुशी हुई !!!! आपका हृदय से आभार् !!!!
आदरनीय सन्दीप भाई , नव गीत को आपका अनुमोदन मिला , मेरी मेहनत सफल हुई !!!!! आपका हार्दिक आभार !!!!!
आदरणीया मीना जी , आपका दिल से शुक्रगुजार हूँ , प्रथम नव गीत की सराहना के लिये !!!!
आ0 भण्डारी जी सुंदर नवगीत , सुंदर भाव , बधाई आपको ।
वाह वाह सर जी
बेहतरीन गीत रचा है आपने सादर बधाई स्वीकार कीजिये
वाह वाह वाह
बहुत सुन्दर नवगीत | हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय | सादर
आदरणीय राजेश भाई , प्रथम नव गीत को स्वीकार करने के लिये आपका आभारी हूँ !!!!!!!
आपका कहना सही है , उपेक्षा एवं अपेक्षा दोनो गेयता भंग कर रहे हैं !!! मै प्रयास करूंगा !!! आपसे भी अनुरोध है अगर कुछ अच्छा सूझे तो बिना संकोच बतायें !!! आपका पुनः आभार !!!!
आदरणीय श्याअम भाई , रचना की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ !!!!!
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