For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कौन जाने
सिर्फ मैं हूँ,
या कि कोई और भी है,
जो उलझता है,
तड़पता है,
झुलसता है,
कभी फिर
बुझ भी जाता है...

जो उलझता है,
कि जैसे
ज़िन्दगी के क़ायदे-क़ानून
बनकर साजिशों के तार
चारों ओर से घेरा बनाकर
हर नये सपने
हर एक ख़्वाहिश
के सीने में चुभाकर
रवायतों की सलाईयाँ,
बुनते और बिछाते जा रहे हों
मकड़ियों के जाल...

जो तड़पता है,
उसी मानिन्द
जैसे सीपियों में क़ैद नन्हीं बूँद कोई
हो तड़पती तैरने को
पंख फैलाकर समन्दर में;
बड़े ही खूबसूरत
चमचमाते नाम देकर,
सिसकियाँ उस बूँद की
मोती बनाकर,
हैं सजाते लोग
कितने शौक से बाज़ार...

जो झुलसता है,
तजुर्बों की अंगीठी में पड़े
इक नर्म पत्ते सा,
दबा है जो
कई वज़नी
नसीहतों के कोयलों के तले,
बहुत कोशिश करे भी तो
ज़रा सा हिल ही पाता है,
सुलगता है
अंगीठी की
हर एक आँच के साथ...

कौन जाने
सिर्फ मैं हूँ,
या कि कोई और भी है...

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 631

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अजय कुमार सिंह on December 2, 2013 at 3:21pm
आदरणीया कुन्ती जी और प्राची जी, रचना पसन्द करने और उत्साहवर्धन करने के लिये धन्यवाद। साथ ही रचना के एक अंश में बिम्ब की अतार्किकता की ओर ध्यान दिलाने के लिये प्राची जी का  हार्दिक आभार। मैं वस्तुतः इसे बिम्ब की  अतार्किकता की बजाय अभिव्यक्ति की अस्पष्टता कहना चाहूँगा, और इस कमी के लिये अपनी अयोग्यता को नत होकर स्वीकार करूँगा।
यहाँ मैंने  'सीपियों में क़ैद नन्हीं बूँद' उस मोती को कहा है, जो  बूँद जैसा ही कोमल है, और चाहता तो है कि वह भी सागर में पंख फैलाकर तैरा करे, लेकिन वह  क़ैद है, तैर नहीं सकता, नहीं कर सकता पूरा अपना सपना; और लोग उसे 'मोती' का नाम देकर ऊँची ऊँची कीमत लगाते हैं, और बाज़ार सजाते हैं …… लेकिन यह सारा मूल्य, यह सारी  क़ीमत, जो कहने को तो उसी की है, लेकिन उसके किस काम की.…जिसका अपना सपना ही पूरा न हुआ ……!!!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 29, 2013 at 7:40pm

संघर्षों में फंसे, हौसला हारते भाव..परिस्थियों के हाथों असहाय मन के उदगार खुल कर अभिव्यक्त हुए हैं... और साथ ही ये भी ख़याल आश्वस्ति की एक नन्ही सी किरण सा कि "सिर्फ मैं हूँ या कि कोइ और भी है"

अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई.. अजय जी 

जैसे सीपियों में क़ैद नन्हीं बूँद कोई
हो तड़पती तैरने को
पंख फैलाकर समन्दर में;..................................थोडा अतार्किक सा बिम्ब है. (बूँद का पंख फैलाकर समुद्र में तैरना)

Comment by coontee mukerji on November 29, 2013 at 4:21pm

बहुत भाव पूर्ण रचना.हार्दिक बधाई स्वीकार करें अजय कुमार जी.

सादर/कुंती

Comment by अजय कुमार सिंह on November 29, 2013 at 11:49am

आप सभी को रचना पसन्द करने के लिये धन्यवाद। बृजेश नीरज जी और सन्दीप जी! आपके सकारात्मक और सुधारात्मक सुझावों के लिये सादर आभार। इन दोषों और त्रुटियों के साथ भी आपने रचना पसन्द की.…आभारी हूँ।

Comment by annapurna bajpai on November 28, 2013 at 8:17pm

सुंदर रचना बधाई आपको । 

Comment by बृजेश नीरज on November 28, 2013 at 7:48pm

सुन्दर रचना है! आपको हार्दिक बधाई!

पंक्तियाँ तोड़ते समय सावधानी की आवश्यकता होती है, प्रवाह में कभी-कभी बाधा पहुंचती है. इस दृष्टि से रचना एक बार फिर देख लें.

सादर!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 28, 2013 at 7:42pm

बहुत सुन्दर आदरणीय क्या बात है बधाई हो

अंत में कोयलों की जगह कोयले प्रयुक्त करें तो कैसा रहेगा

Comment by Meena Pathak on November 28, 2013 at 5:29pm

बहुत सुन्दर रचना .. बधाई आप को 

Comment by अजय कुमार सिंह on November 28, 2013 at 5:01pm
कविता को पसन्द करने के लिये आप सभी का हार्दिक आभारी हूँ।
Comment by राजेश 'मृदु' on November 28, 2013 at 4:18pm

आपकी अभिव्‍यक्ति अच्‍छी लगी, सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"नमस्ते जी, बहुत ही सुन्दर और ज्ञान वर्धक लघुकथा, हार्दिक बधाई l सादर"
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
Friday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service