For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत - मूढ़ तू क्या कर सकेगा, अनुभवी जग को पराजित!

मूढ़ तू क्या कर सकेगा, अनुभवी जग को पराजित!

है सदा जिसको अगोचर, प्राण की संवेदना भी,

क्यों करे तू उस जगत से प्रेम-पूरित याचना ही,

तू करेगा यत्न सारे भावना का पक्ष लेकर,

किन्तु तेरे भाग्य में होगी सदा आलोचना ही,

विश्व ही विजयी रहेगा, तू सदा होगा पराजित...

सोचता है तू, कि कर लेगा कभी यह सिद्ध, पागल !

"सृष्टि का आधार हैं, बस प्रेम के कुछ भाव कोमल,

एक दिन अवनतमुखी इस कुटिल जग का दर्प होगा,

उस दिवस होंगे, सभी कटु दंशमय आक्षेप निष्फल"

हाय! क्यों यह भ्रम हुआ है, हृदय में तेरे विराजित?

तू नहीं है वह प्रथम, जिसने कि जग से बैर पाला,

किन्तु इस निर्दय जगत का है नियम ऐसा निराला,

यत्न जिसने भी किया- विपरीत धारा के चले वह,

ज्वार ने इस सिन्धु के, उसका पराक्रम रौंद डाला,

क्या तुझे करता नहीं इतिहास इस जग का प्रभावित!

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 764

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अजय कुमार सिंह on September 26, 2013 at 9:42pm

Dr.Prachi Singh जी - मेरा यह प्रयास आपको रूचा. इसके लिए आभारी हूँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2013 at 9:26pm

बहुत प्रवहमान सुन्दर गीत...

भाव सरिता जैसे निर्झर बह चली, 

तू नहीं है वह प्रथम, जिसने कि जग से बैर पाला,

किन्तु इस निर्दय जगत का है नियम ऐसा निराला,

यत्न जिसने भी किया- विपरीत धारा के चले वह,

ज्वार ने इस सिन्धु के, उसका पराक्रम रौंद डाला,

क्या तुझे करता नहीं इतिहास इस जग का प्रभावित!

बहुत सुन्दर ! हार्दिक बधाई स्वीकारें 

Comment by अजय कुमार सिंह on September 26, 2013 at 9:19pm

राजेश 'मृदु' जी एवं अभिनव अरुण जी - पाठक की सराहना ही लेखक/कवि का संबल होता है. हृदय से धन्यवाद देता हूँ.

Comment by Abhinav Arun on September 26, 2013 at 5:29pm

किन्तु इस निर्दय जगत का है नियम ऐसा निराला,

यत्न जिसने भी किया- विपरीत धारा के चले वह,

ज्वार ने इस सिन्धु के, उसका पराक्रम रौंद डाला,

क्या तुझे करता नहीं इतिहास इस जग का प्रभावित!

            ............सुन्दर अद्भुत अनुपम अप्रतिम ....सौ सौ साधुवाद बधाइयाँ श्री अजय जी !!

Comment by राजेश 'मृदु' on September 26, 2013 at 3:13pm

बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति

मूढ़ तू क्या कर सकेगा,

अनुभवी जग को पराजित!

है सदा जिसको अगोचर,

प्राण की संवेदना भी,

क्यों करे तू उस जगत से

प्रेम-पूरित याचना ही,

तू करेगा यत्न सारे

भावना का पक्ष लेकर,

किन्तु तेरे भाग्य में

होगी सदा आलोचना ही,

विश्व ही विजयी रहेगा,

तू सदा होगा पराजित...

Comment by अजय कुमार सिंह on September 26, 2013 at 12:32am

अरुन शर्मा 'अनन्त' जी, SANDEEP KUMAR PATEL जी, vijay nikore जी, गीतिका 'वेदिका' जी -

गीत को पसन्द करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार. 

Comment by वेदिका on September 26, 2013 at 12:10am

लय, प्रवाह सब गुणो से युक्त गीत रचना!! बधाई !!

Comment by vijay nikore on September 25, 2013 at 7:37pm

सुन्दर प्रवाहमयी रचना । बधाई, आदरणीय अजय सिहं जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 25, 2013 at 4:17pm

आदरणीय बहुत ही सुन्दर भाव पूर्ण शिल्प से परिपूर्ण गीत के लिए बधाई स्वीकारें

जय हो

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 25, 2013 at 4:06pm

वाह क्या कहने भाई कामयाब प्रस्तुति शिल्प, कथ्य, भाव, प्रवाह एवं शब्द चयन सब कुछ दुरुस्त अपनी अपनी जगह, शुरुआत ही आपने बहुत ही सुन्दरता से की है, इस ओजपूर्ण प्रस्तुति पर दिल से बधाई प्रेषित है स्वीकार करें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
8 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
8 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
8 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
9 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
14 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service