प्रेम रूप हैं राधिका, प्रेम हैं राधेश्याम ।
प्रेम स्वयं माते सिया, प्रेम सियापतिराम ।।
सत्यवती सा प्रेम जो, हो जीवन में साथ ।
कष्ट उचित दूरी रखे, मृत्यु छोड़ दे हाथ ।।
अद्भुत भाषा व्याकरण, विभिन्न रूप प्रकार ।
प्रेम धरा पर कीमती, ईश्वर का उपहार ।।
निश्छल यदि हो भावना, मर्यादित हो प्यार ।
नृत्य झूम कर मन करे, तन करता श्रृंगार ।।
लगे देखिये प्रेम से, स्वर्णिम यह संसार ।
सदा प्रेम से ही बने, सुन्दर घर परिवार ।।
प्रेम समस्या से करें, होगा दुख का अंत ।
प्रेम अमिट संसार में, कहें महात्मा संत ।।
पशु पक्षी जन जीव सब, सुन मुरली की तान ।
मन्त्र मुग्ध हैं प्रेम में, नहीं रहा कुछ ध्यान ।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय संदीप भाई जी
प्रेम की इन्द्रधनुषी छटा से सुसज्जित दोहे i
अनंत जी भला किसका न मन मोहे ii
वाह वाह आदरणीय अरुण भाई साहब बहुत ही सुन्दर प्रेममयी दोहे रचे हैं आपने
सादर बधाई स्वीकारें
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