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मेरा मन झूम राधा हो : अरुन शर्मा 'अनन्त'

भलाई का इरादा हो,
परस्पर प्रेम आधा हो,

मुरारी की सुनूँ मुरली,
मेरा मन झूम राधा हो,

लबालब प्रेम से हो जग,
गली घरद्वार वृंदा हो,

यही मैं चाहता हूँ रब,
मेरी चाहत चुनिन्दा हो,

ह्रदय में प्रेम उपजे औ,
मधुर सम्बन्ध जिन्दा हो,

खुले आकाश के नीचे,
सदा निर्भय परिन्दा हो,

बसे इंसानियत दिल में,
मरा भीतर दरिन्दा हो....

मौलिक व अप्रकाशित ..

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Comment by अरुन 'अनन्त' on December 9, 2013 at 12:41pm

आदरणीय श्री सौरभ सर ग़ज़ल आपको पसंद आई ग़ज़ल सार्थक हुई हार्दिक आभार आपका.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 8, 2013 at 12:14am

खूब खूब .. बहुत खूब ! .. :-))))

वाह भाई,..

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 4, 2013 at 1:10pm

बहुत बहुत शुक्रिया अनुज राम

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 4, 2013 at 1:10pm

हार्दिक आभार आदरणीय जीतेंद्र भाई जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 4, 2013 at 1:04pm

आदरणीय बृजेश भाई जी आप अग्रज हैं क्षमा न मांगे भूल हो जाती है भाई जी सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 4, 2013 at 1:04pm

हार्दिक आभार श्याम नारायण  जी

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 4, 2013 at 1:01pm

हार्दिक आभार आदरणीया मीना जी

Comment by ram shiromani pathak on December 2, 2013 at 11:58pm

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय भाई अरुण शर्मा जी ,//////बहुत बहुत बधाई। … सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 2, 2013 at 11:58pm

ह्रदय में प्रेम उपजे औ,
मधुर सम्बन्ध जिन्दा हो,....... सच! अति सुंदर सन्देश

अति सुंदर गजल, बधाई स्वीकारें आदरणीय अरुण अनंत जी.

Comment by बृजेश नीरज on December 2, 2013 at 6:57pm

आदरणीय अरुण भाई, अपनी गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ. मैंने दोनों मिसरों पर ध्यान नहीं दिया.

इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए एक बार फिर बधाई!

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