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धनक से रंग लाये हैं तुम्हें जी भर लगायें हम
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तमन्नाओं की कश्ती में तुझे ऐ दिल बिठायें हम
तेरी इन डूबती सांसों की उम्मीदें जगायें हम
बहुत ठोकर मिली दुनिया से ये सब जानते ही हैं
थका हारा बहुत लगता है आ तुझको सुलायें हम
नये सपने नये अरमान ले के देख आये हैं
भरोसा कर ले आँखें खोल तुमको भी दिखायें हम
बहुत बेरंग दुनिया थी तेरी अब तक चलो माना
धनक से रंग लाये हैं तुझे जी भर लगायें हम
सभी दिन कब हुये रोशन सभी रातें नही काली
तेरी तारीकियों में मिल सभी किरणें सजायें हम
तेरी मुस्कान की कलियाँ खिलेंगी फिर से गुलशन में
सुनहरी यादें ताज़ा कर तुझे आ गुदगुदायें हम
चलो दिल खोल के बोलें करें शिकवे भी आपस में
जलन दिल में लिये धीरे से काहे बुदबुदायें हम
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आ ---हा---- अनुज i मेरेमित्र i आप तो सचमुच ग़ज़ल के हिमालय(गिरिराज ) हैं i आचार्य शुक्ल ने जायसी के ' पिव से कहेव संदेशडा हे भौंरा i हे काग i ' में सन्देशडा ( यहा ड के नीचे बिंदु भी है ) और दो बार हे के प्रयोग की भूरि भूरि सराहना की थी i मै आपके धनक शब्द के प्रयोग पर निशब्द हूँ i इस शब्द की धमक से ग़ज़ल सद्म्स्नाता सुन्दरी सी लग रही है i बहुत सुन्दर बंधू/मित्र i
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