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बेटी..रजनी ! तुम्हारे मामाजी के लड़के से, तुम्हारी ननद याने अपनी गायत्री की शादी, तय हो ही गई, मैं बहुत खुश हूँ, बस..! उन लोगो से लेनदेन की बात संभाल लेना, तुम तो जानती ही हो. आजकल महंगाई आसमान छू रही है.......सुलोचना जी ने अपनी बहु को बेटी बनाकर, बड़े ही प्यार से कहा..

जी हाँ..! माँ जी..महंगाई तो पिछले वर्ष भी आसमान से टिकी हुयी थी, जब आपने मेरे मायके वालों से लाखों का सोना और पूरी गृहस्थी का सामान मांग लिया था..खैर, वैसे मैंने मामाजी को फालतू खर्च की बजाय, मंदिर से शादी के लिए राजी कर लिया है.......रजनी ने अपनी सास के नहाने के गर्म पानी में, थोडा ठंडा पानी डालते हुए कहा..

   जितेन्द्र ' गीत '

 ( मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 20, 2013 at 12:49am

लघुकथा पर आपकी उत्साहबर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका हृदय से आभार आदरणीय अखिलेश जी, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 20, 2013 at 12:45am

लघुकथा पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर लेखनी की सार्थकता का प्रमाण मिलता है, अब आप इसे बहु का जवाब समझिये या समय की समय की करवट , और गर्म पानी से नहाना सेहत के लिए नुकसानदायक होता है, :)

आदरणीय अरुण अनंत जी , आपका हार्दिक आभार  सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 20, 2013 at 12:36am

रचना पर आपकी सराहना पाकर, हृदय से आभारी हूँ आपका आदरणीय चंद्रशेखर जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 19, 2013 at 7:01pm

जय हो..  :-))))

कोशिशें रंग ला रही हैं. अब भाषा पर भी ध्यान देना शुरु करें..
शुभेच्छाएँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 19, 2013 at 6:35pm

दुसरों की बेटी को घर लाते वक़्त महँगाई का ध्यान भी न रहा और जब खुद पर पड़ी तो.....

ऐसी विचारधारा को समक्ष करते एक सामाजिक पहलू पर सुन्दर प्रयास है आ० जितेन्द्र जी 

बहुत्बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 19, 2013 at 1:05pm

क्या बात है आदरणीय

बहुत सुन्दर लघुकथा

और चलिए कम से कम उनकी बहु ने बदला नहीं लिया

Comment by AVINASH S BAGDE on November 19, 2013 at 10:44am

apane pe aate hi log deen ho jate hai warana shaah ...sunder laghukatha जितेन्द्र जी।

Comment by vijay nikore on November 19, 2013 at 10:27am

सुन्दर संदेश देती इस लघुकथा के लिए बधाई, आदरणीय जितेन्द्र जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by नादिर ख़ान on November 18, 2013 at 10:13pm

अच्छी लघुकथा और जिस ढंग से आपने लघुकथा का समापन किया है, बहुत पसंद आया बधाई स्वीकारें आदरणीय धर्मेंद्र जी ।

Comment by बृजेश नीरज on November 18, 2013 at 7:46pm

अच्छा कथ्य! आपको हार्दिक बधाई!

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