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ग़ज़ल - चाँदनी छिटकी हुई पर मन मेरा खामोश है

चाँदनी छिटकी हुई पर मन मेरा खामोश है।

बेखबर इस रात में सारा जहाँ मदहोश है।

वक्त आगे भागता, जम से गये मेरे कदम,
हाँ, सहारा दे रहा तन्हाई का आगोश है।

हँस रहा चेह्रा मेरा तुम तो बस इतना जानते,
क्योंकि गम दिल संग सीने में ही परदापोश है।

माँगता मैं रह गया, दे दो बहारों कुछ मुझे,
अनसुना कर बढ़ गईं, इसका बड़ा आक्रोश है।

अब कहाँ रौनक बची "गौरव" उमंगों की यहाँ,
घट रहा साँसों सहित धड़कन का पल-पल जोश है।

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 10, 2013 at 9:33pm

बहुत ख़ूब ... गुणी जनों की राय गौर करने जैसी है ... सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 10, 2013 at 9:33pm

बढ़िया ग़ज़ल लिखी है तीसरा शेर पुनः देख लें ,बहरहाल बधाई आपको 

Comment by annapurna bajpai on November 10, 2013 at 8:56pm

खूबसूरत गजल , बधाई आपको अदरणीय कुमार गौरव जी । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 10, 2013 at 8:41pm

आदरणीय कुमार गौरव भाई , गज़ल के सुन्दर प्रयास के लिये आपको बधाई !!!!! आदरणीय शिज्जू भाई की बात से सहमत हूँ !!!! तीसरा शेर बह्र से बाहर भी है , क्रिपया देख लें !!!!!

Comment by मोहन बेगोवाल on November 10, 2013 at 7:33pm

कुमार जी‌, आप की गज़ल अच्छी लगी ,बधाई हो 

Comment by umesh katara on November 10, 2013 at 6:55pm

बधायी हो बाह्ह्ह्ह्

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 10, 2013 at 5:52pm

गौरव जी , अभी आपकी उम्र हुई क्या है  I अभी जोश बरक़रार रखिये  I निराशा पलायन वृत्ति है  I  अभी आपसे कल्पना के बहुविधि उड़ानों की उम्मीद है I  वीर तुम बढे चलो  I  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 10, 2013 at 5:14pm

ग़ज़ल अच्छी है आदरणीय अजीतेंदु जी, मगर ग़ज़ल थोड़ा वक्त और माँग रही है बहरहाल इस मेहनत के लिये दाद स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

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