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अभी पूर्णविराम नहीं!!!(अतुकांत )

नीरवता , सन्नाटा

शून्यता बस यही तो बचा था

जैसे अंतर के स्वर को

लील चूका हो बाह्य कोलाहल

रिक्त अंतर घट

कोई प्यास भी नहीं बाकी  

सुप्त प्राय आत्मा

एकदम शांत

 उस जर्जर दरख़्त की

ठूँठ की तरह

जो मौन हो गया ये सोचकर

कि कोई नव कोंपल

अब कभी नहीं फूटेगी

आँखे मूँद कर लेट जाती हूँ

लहरें उछलकर भिगो देती हैं

शायद वार्तालाप करना चाहती हैं

वाचाल जो ठहरी

ये मसखरी भली नहीं लगती

किश्ती हिलती है ,आँखें खोलती हूँ

क्रुद्ध हो घूरने लगती हूँ लहरों को

यकायक नजरें टिक जाती हैं उस पीले पत्ते पर

जो अनवरत बहता जा रहा है

हिचकौले खाता  हुआ

उस पर बैठा हुआ एक कीट  

अपना जीवन बचने के लिए

संघर्ष करता जा रहा है

प्रकृति का ईशारा समझ

खोल लेती हूँ डायरी का नया पन्ना

और कलम दो उँगलियों की गर्माहट से पुनः

पिघलने लगती है

लहरें मुस्कुरा कर कहती हैं

अभी पूर्णविराम नहीं!!!  

***************

(मौलिक एवं अप्रकाशित)   

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 8, 2013 at 9:45am

आदरणीय रविकर भाई जी आपका हार्दिक आभार ..

Comment by रविकर on November 7, 2013 at 7:11pm

प्रोत्साहित करती प्रस्तुति-
आभार दीदी -


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 7, 2013 at 3:35pm

yes respected Gopal Narain ji thats right ,a little attention on even a small life,who struggling for its existence teach us a lesson that we  should never give up ...jab tak saans hai tab tak aas hai ...thanks a lot.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 7, 2013 at 3:20pm

  A little attention seems inevitable  on   Keet ke purnviram  par .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 7, 2013 at 3:13pm

आदरणीय गिरिराज जी आपकी सराहना पाकर ये रचना सार्थक हुई ,हृदय से आभारी हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 7, 2013 at 2:59pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी , आशा जगाती आपकी इस रचना के लिये आपको ढेरों बधाई !!!!!

और कलम दो उँगलियों की गर्माहट से पुनः

पिघलने लगती है

लहरें मुस्कुरा कर कहती हैं

अभी पूर्णविराम नहीं!!!  --------------- इन  पंक्तियों के लिये आपको विशेष बधाई !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 7, 2013 at 10:41am

हार्दिक आभार प्रिय राम पाठक आपको रचना पसंद आई. 

Comment by ram shiromani pathak on November 7, 2013 at 9:49am

जो अनवरत बहता जा रहा है

हिचकौले खाता  हुआ

उस पर बैठा हुआ एक कीट  

अपना जीवन बचने के लिए

संघर्ष करता जा रहा है

प्रकृति का ईशारा समझ

खोल लेती हूँ डायरी का नया पन्ना

और कलम दो उँगलियों की गर्माहट से पुनः

पिघलने लगती है

लहरें मुस्कुरा कर कहती हैं

अभी पूर्णविराम नहीं!!!  

वाह आदरणीया राजेश कुमारी जी क्या चित्र खीचा है अपने। बहुत ही सुन्दर

बहुत बहुत बधाई आपको ।सादर

कृपया ध्यान दे...

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