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टूटा फूटा खिलौना ( अतुकांत ) गिरिराज भंडारी

टूटा फूटा

खिलौना

फेक देने लायक

खेलता बच्चा

खुश है

आनंदित है

खिलखिला रहा है

बावज़ूद इसके

खिलौना टूटा है

आनंद सच्चा है

समूचा है

क्यों कि आनंद वस्तु में नही

अपने भीतर है

शायद जानता ये बच्चा है !!!!

और

छीन लेने से

बेमोल , टूटे खिलौने को

चिल्लाता है

रोता है

आँसू भी बहाता है

सच्चे सच्चे

हम समझदार हैं

व्यर्थ की वस्तु के लिये

रोना हमारे लिये निरा व्यर्थ है

बच्चा जानता है लेकिन

सच्चा आनंद देती

उस टूटे फूटे

खिलौने का   

उसके लिये क्या अर्थ है

सोचता हूँ कभी कभी

क्या समझदारी

आनंद छीन लेती है ?

*****************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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Comment

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Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 27, 2013 at 10:27pm

वाह - वाह........ एक बच्चे की मनोवृत्ति पर आधारित..... एक बहुत ही सुन्दर रचना !!!!

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on October 27, 2013 at 9:58pm

बहुत बढिया ...वैसे व्यर्थ की वस्तु के लिये रोना हमारे लिये निरा व्यर्थ है पर बच्चा यह नहीं जानता ..उसे तो टूटे खिलौने में ही आनंद कि अनुभूति होती है ..वो क्या जानता है कि आनंद हमारे भीतर ही है ...खैर आपकी इस बेहतर रचना के लिए दिल से बधाई ...

Comment by Saarthi Baidyanath on October 27, 2013 at 9:58pm

बेहद प्रिय लगी ये पंक्तियाँ ...दिल को छूने वाली ...! बहुत बहुत बधाई आदरणीय समर्थ रचना के लिए 

बावज़ूद इसके

खिलौना टूटा है

आनंद सच्चा है

समूचा है

क्यों कि आनंद वस्तु में नही

अपने भीतर है

शायद जानता ये बच्चा है !!!!

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