टूटा फूटा
खिलौना
फेक देने लायक
खेलता बच्चा
खुश है
आनंदित है
खिलखिला रहा है
बावज़ूद इसके
खिलौना टूटा है
आनंद सच्चा है
समूचा है
क्यों कि आनंद वस्तु में नही
अपने भीतर है
शायद जानता ये बच्चा है !!!!
और
छीन लेने से
बेमोल , टूटे खिलौने को
चिल्लाता है
रोता है
आँसू भी बहाता है
सच्चे सच्चे
हम समझदार हैं
व्यर्थ की वस्तु के लिये
रोना हमारे लिये निरा व्यर्थ है
बच्चा जानता है लेकिन
सच्चा आनंद देती
उस टूटे फूटे
खिलौने का
उसके लिये क्या अर्थ है
सोचता हूँ कभी कभी
क्या समझदारी
आनंद छीन लेती है ?
*****************
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
ठगा सा रह गया आपकी इस रचना पर और उसकी प्रस्तुति पर । समझदारी आनंद छीनती है, आपकी रचना के परिप्रेक्ष्य में विचार करता हूं तो ऐसा ही लगता है, सादर
आदरणीय जितेन्द्र भाई , रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!!!!!
क्यों कि आनंद वस्तु में नही
अपने भीतर है
शायद जानता ये बच्चा है !!!!
बहुत गहरी सच्चाई, सुंदर रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय गिरिराज जी
आदरणीया वन्दना जी , रचना की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!!!!
आदरणीय सुशील भाई , आपने मेरी चिंतन के मर्म को छू लिया , आदरणीय आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!!!!
आदरणीय विशाल भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ !!!!
आदरणीय अतेन्द भाई , आनंद मे जी पाना ही जानने का सबूत होता है , और आनंदित न रह् पाना ही अज्ञानता का ,यही बात चिंतन से समझाने का प्रयास किया हूँ !!!! रचना की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ !!!!
आदरणीय बैद्यनाथा भाई , चिंतन आपको भा गये , मुझे बहुत खुशी हुई !!! ये खुशी देने के लिये आपका आभारी हूँ !!!!
सोचता हूँ कभी कभी
क्या समझदारी
आनंद छीन लेती है ?
सार्थक रचना ....हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज सर
क्या समझदारी
आनंद छीन लेती है ?............ इस सवाल को छोड़ती हुई रचना सचमुच सोचने पर मजबूर कर देती है...... और फिर मन कहता है शायद 'हाँ'............. क्योंकि तभी एक नासमझ बच्चा टूटे फूटे खिलौने से भी आनंदित हो उठता है और हम शायद उसे देख मुँह मोड़ते हैं.......... बच्चे को मनोभावों को दर्शाती एक सुंदर रचना हेतु बधाई आ0 गिरिराज जी....
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