1212 1122 1212 22 .... अंतिम रुक्न ११२ भी पढ़ा गया है ..
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नज़र, नज़र से मिला, सब्र आज़माते रहे,
मेरे रक़ीब मुझे देख, तिलमिलाते रहे.
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घटाएँ, रात, हवा, आँधियाँ करें साज़िश,
मगर चिराग़ ये बेखौफ़ जगमगाते रहे.
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गुनाह, जुर्म, सज़ा, माफ़ आपकी कर दी,
ये कह दिया तो बड़ी देर सकपकाते रहे.
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खफ़ा खफ़ा से रहे बज़्म में सभी मुझसे,
वो पीठ पीछे मेरे शेर गुनगुनाते रहे.
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मिला हमें न सुकूँ दफ्न कब्र में होकर,
किसी की ज़ुल्फ़ अदा, अश्क़ याद आते रहे.
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फ़रेब झूठ सरीखे, बना लिए साथी,
इबादतों में ख़ुदा को मगर भुलाते रहे.
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पुकारता है किसे ‘नूर’ इस जहाँ में अब,
कि कश्तियाँ, तेरे साहिल ही ख़ुद डुबाते रहे.
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निलेश 'नूर'
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
घटाएँ, रात, हवा, आँधियाँ करें साज़िश,
मगर चिराग़ ये बेखौफ़ जगमगाते रहे. .
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मिला हमें न सुकूँ दफ्न कब्र में होकर,
किसी की ज़ुल्फ़ अदा, अश्क़ याद आते रहे. ....उम्दा और खूबसूरत कलाम से नवाजने के लिए शुक्रिया और मुबारकबाद श्री नीलेश जी !!
आदरणीय शकील जी ,
पुन: विचार के बाद दो शेर फ़िलवक्त हटा दिए है और थोडा हेरफेर किया है .. उम्मीद है आप से यथेष्ठ मार्गदर्शन प्राप्त होगा ..
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नज़र, नज़र से मिला, सब्र आज़माता है,
मेरा रक़ीब मुझे देख, तिलमिलाता है.
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घटाएँ, रात, हवा, आँधियाँ करें साज़िश,
मगर चिराग़ ये बेखौफ़ जगमगाता है.
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गुनाह, जुर्म, सज़ा, माफ़ आपकी कर दी,
कहा ये जब से, मुझे देख सकपकाता है.
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खफ़ा खफ़ा ही रहा हर सफ़र में जो मुझसे
सफ़र के बाद मेरे शेर गुनगुनाता है.
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पुकारता है किसे ‘नूर’ इस जहाँ में अब,
कि कश्तियाँ तेरी साहिल ही ख़ुद डुबाता है.
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जी आप की सलाह पर ग़ज़ल में उचित बदलाव कर रहा हूँ ... अभी पेश करता हूँ ...
आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी
सीख तो मैं भी रहा हूं। बस गजल की कुछ चीजों से मैं संतुष्ट नहीं हो पा रहा था, इसलिए इंगित कर दिया।
आदरणीय शकील साहब,
बहुत बहुत शुक्रिया कि आप ने मेरी कमियां पॉइंट आउट की. अभी सीख रहा हूँ अत: इतनी डिटेल जानकारी नहीं है मेरे पास. आप की सलाह उचित है और इसे शिरोधार्य करतें हुए, मै इस ग़ज़ल पर पुन: विचार करता हूँ ...
मेरी अन्य रचनाओं पर भी दृष्टीपात कर अनुगृहित करें
आभार ..
इस खूबसूरत गजल के लिए बधाई स्वीकारे आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी।
घटाएँ, रात, हवा, आँधियाँ करें साज़िश,
मगर चिराग़ ये बेखौफ़ जगमगाते रहे..............ये शेअर विशेषतौर पर पसंद आया।
मेरी बस एक ही जिज्ञासा है। आपने हर काफिए में मात्रा गिराई है। जहां तक मेरी जानकारी है गजल शिल्प के अनुसार काफिये में मात्रा गिराना ठीक नहीं माना जाता है। आप भी वजाहत करें।
एक और बात आदरणीय, चौथे शेअर में तकाबुले रदीफ का दोष है। सादर।
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