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गजल: प्यार में कैसी ये त्रासदी हो गई/शकील जमशेदपुरी

बह्र: 212 212 212 212

__________________________

प्यार में कैसी ये त्रासदी हो गई

देख कर पीर पलकें दुखी हो गई

तेरी यादों ने दिल पे यूं दस्तक दिया
आंख बहने लगी औ नदी हो गई

संग तेरे तो बरसों भी पल भर लगा
एक पल की जुदाई सदी हो गई

प्रेम के मानकों पर जो परखा नहीं
भूल बस एक हम से यही हो गई

शेअर ऐसे नहीं हैं जो दिल पर लगे
आज फिर दर्दे दिल में कमी हो गई

कश्मकश में अभी तक पड़ा है ‘शकील’
कैसे इक शख्स की वो सगी हो गई?

-शकील जमशेदपुरी
________________________________

*मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 8:01pm

भावों का सुंदर संप्रेषण है आ0 शकील भाई..... बधाई स्वीकारें...... शिल्प के मापदंडों से मैं अनभिज्ञ हूँ.....

Comment by शकील समर on October 22, 2013 at 10:49am

आदरणीय सौरभ सर

आपने दुरुस्त फरमाया। जल्दबाजी तो कर दी मैंने। आइंदा से ख्याल रखूंगा। आभार इस सुझाव के लिए।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 22, 2013 at 10:30am

भाईजी, मतला ही गड़बड़ हो गया है. रदीफ़ को देखिये आपसी एकवचन और बहुवचन गड्डमड्ड हो रहे हैं.

मक्ता .. के लिए खूब वाह-वाह लीजिये.  लेकिन अन्य सभी शेर आपसे समय मांग रहे हैं. 

वैसे ग़ज़ल पर अबतक बनी या लगातार बन रही आपकी समझ आश्वस्त करती है.

कमसेकम आप ज़ल्दबाज़ी से खुद को बचायें. जो ऐसा कर रहे हैं उनसे आपको क्या . .. :-))))

शुभेच्छाएँ

Comment by शकील समर on October 22, 2013 at 9:49am

आ. vandana जी, Pankaj Mishra जी, डॉ. अनुराग सैनी जी, गिरिराज भंडारी जी, Dr Ashutosh Mishra जी और  जितेन्द्र 'गीत' जी,

आप सभी का बहुत बहुत आभार।

Comment by vandana on October 22, 2013 at 7:20am

प्रेम के मानकों पर जो परखा नहीं
भूल बस एक हम से यही हो गई

बहुत खूब आदरणीय शकील सर 

Comment by Pankaj Mishra on October 22, 2013 at 12:05am

बहुत खूब ............भाव जबरदस्त है

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 21, 2013 at 11:05pm

ग़ज़ल अपने मनको पर खरी हो या न हो मगर भाव जबरदस्त है | बहुत बहुत बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 21, 2013 at 8:46pm

आदरणीय शकील भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही है भाई !!! बधाई !!! वीनस भाई की बातें ज़रूर ध्यान मे लायें !!!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 21, 2013 at 12:32pm

संग तेरे तो बरसों भी पल भर लगा
एक पल की जुदाई सदी हो गई..आदरणीय शकील जी इस बेहतरीन शेर के लिए ढेरो दाद कबूलें 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 21, 2013 at 9:52am

प्रेम के मानकों पर जो परखा नहीं
भूल बस एक हम से यही हो गई........वाह ! यह तो जानलेवा शेर हुआ

बेहतरीन गजल , दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय शकील साहब

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