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"क्यों..भाई, क्या हुआ ? अतिवृष्टि से चौपट हुयी फसल का, मुआवजा दे रही है न राज्य-सरकार ?" रामभरोस ने बड़ी आशाभरी आवाज से पूछा.

"काकाजी..!! दे तो रही थी, पर विपक्ष के नेताओं ने, अगले महीने चुनाव आता देख, चुनाव-आयोग को शिकायत कर स्टे लगवा दिया.. अब देखो क्या होता है ", नितिन ने बड़ी निराशा से कहा.

"अरे बेटा ! सोच रहे थे, कुछ पैसे मिल जाते तो अगली फसल के लिए खाद पानी का जुगाड़ हो जाता, और दीवाली भी मना लेते...", रामभरोस ने कराहते हुए स्वर में कहा..

       जितेन्द्र ' गीत '
  ( मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 18, 2013 at 6:17pm

बेबस भारत का किसान है, हर हाल में वो परेशान है। बधाई जितेंद्र भाई। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 18, 2013 at 6:13pm

आदरनीय जीतेन्द भाई , सुन्दर लघुकथा !!! राजनीत जितने भी रूप दिखाये वो कम है !!!! किसी के फायदे या नुकसान को नही देखती राजनीति , वो कुर्सी देखती है !!!

Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 18, 2013 at 6:12pm

अच्छी लघु कथा जितेंद्र जी !!!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 18, 2013 at 5:22pm

सिक्के का यह पहलू भी मन को छू गया भाई जितेन्द्र जी, बधाई स्वीकारें.

Comment by Abhinav Arun on October 18, 2013 at 2:23pm

आज के राजनीति की कड़वी सच्चाई ...जनहित से इसका दूर दूर तक कोई नाता नहीं ..अफ़सोस है ...सफल लघुकथा हेतु बधाई आ. जीतेंद्र जी !

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