For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस मंच पर ग़ज़ल कहने का प्रथम प्रयास.. एक तरही ग़ज़ल .."ज़रूरत से ज़ियादा क्यूँ करें हम?"

1222, 1222, 122.
.

ज़रूरत से ज़ियादा क्यूँ करें हम?
लहू दिल से निचोड़ा क्यूँ करें हम?
.

फ़ना हो जाएगा सबकुछ जहां में,
ये झूठा फिर दिखावा क्यूँ करें हम?
.

उगेंगे एक दिन कांटें ही कांटें,
ज़हन में याद बोया क्यूँ करें हम?
.

नहीं परवाह है उनको हमारी,
बिना कारण ही रोया क्यूँ करें हम?
.

हमारे काम खुद ही बोलतें है,
ज़ुबानी कोई दावा क्यूँ करें हम?
.

जुदा है रास्ते तुमसे हमारे,
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम?
.

तुम्हारे सामने हस्ती नहीं कुछ,
मगर इज्ज़त का सौदा क्यूँ करें हम?? 
.

अभी तो ज़ख्म अपने सब हरे है,
बता इनको कुरेदा क्यूँ करें हम?? 
.

मिलेगी कौनसी दौलत यहाँ पर,
किसी की क़ब्र खोदा क्यूँ करें हम? 
.

हकीक़त है पता ज़न्नत की हमको,
वहाँ का फिर इरादा क्यूँ करें हम? 
.

चलो अब ‘नूर’ चलते है यहाँ से,
किसी का वक़्त ज़ाया क्यूँ करें हम? 
.
निलेश 'नूर'
मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 754

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 17, 2013 at 10:54pm

धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी एवं डॉ प्राची जी. स्नेह बनाए रखिये.
आभार  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 17, 2013 at 9:04pm

आ० निलेश जी 

बहुत बढ़िया लगी आपकी ग़ज़ल..सहजता से बातें करती हुई.

कई अशआर बहुत पसंद आये 

हार्दिक बढ़ाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 6:51pm

नीलेश नूर साहब, आपकी कोई पहली ग़ज़ल या प्रस्तुति से गुजर रहा हूँ. इस ग़ज़ल पर बहुत-बहुत बधाई स्वीकारिये.
सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 16, 2013 at 5:23pm

शुक्रिया राहुल जी 

Comment by RAHUL VERMA on October 16, 2013 at 5:05pm

.

तुम्हारे सामने हस्ती नहीं कुछ,
मगर इज्ज़त का सौदा क्यूँ करें हम??

---वाह सचमुच लाजवाब शे'र बन पड़ा है ..............पूरी ग़ज़ल ही यकीनन बहुत उम्दा है

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 16, 2013 at 1:47pm

धन्यवाद बृजेश जी, विजय जी.... आभार   

Comment by बृजेश नीरज on October 15, 2013 at 7:04pm

 अच्छी ग़ज़ल हुई है! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by vijay nikore on October 15, 2013 at 7:00pm

अति सुन्दर गज़ल। बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 15, 2013 at 3:57pm

आदरणीय नीलेश जी तहे दिल से आभार आपका ,एक कमाल की ग़ज़ल हुई |

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 15, 2013 at 3:42pm

धन्यवाद आदरणीय मिश्र जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"स्वागतम"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
18 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
19 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आपने अन्यथा आरोपित संवादों का सार्थक संज्ञान लिया, आदरणीय तिलकराज भाईजी, यह उचित है.   मैं ही…"
20 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत शुक्रिया आपका बहुत बेहतर इस्लाह"
21 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service