For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल: मेरे तन को ना छुओ तुम तेरा हाथ जल न जाए...

गजल— 1121/2122/1121/2122

तेरे रूप का ये जादू कहीं मुझपे चल न जाए
यूं बिखेरो ना ये जुल्फें कहीं दिल मचल न जाए

मेरे दिल की इस जमीं पे कोई फूल खिल रहा है
तेरे प्यार का ये मौसम कहीं फिर बदल न जाए

तूने खोल दी है जुल्फें लगे दिन चढ़ा है फिर से
'न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए'

तेरी याद का है जंगल यहां आग सी लगी है
मेरे तन को ना छुओ तुम तेरा हाथ जल न जाए

इसी सोच में हूं डूबा कि पहुंचे बात उन तक
ऐ ‘शकील’ फिर से बेकार तेरी गजल न जाए

-शकील जमशेदपुरी

Views: 815

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2013 at 12:59am

पहली बार आपको शायद पढ रहा हूँ क्या ?

मेहनत करें .. . शुभेच्छाएँ

Comment by Savitri Rathore on October 8, 2013 at 3:07pm

खूबसूरत अहसासों को बयां करती ग़ज़ल ......बधाई हो।

Comment by coontee mukerji on October 7, 2013 at 3:14pm

रूमानियत से ओत प्रोत ...मन को सुंदर एहसास दिलाने वाली गजल.

Comment by शकील समर on October 7, 2013 at 8:28am

आदरणीय अनंत जी, गजल सीखने की प्रारंभिक अवस्था में हूं। इस अमूल्य सुझाव के लिए आभार। इसी तरह इस्लाह करते रहें, ताकि मैं खामियों को दूर कर सकूं। पुन: आभार आपका।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 7, 2013 at 1:04am

सुंदर प्रयास हुआ है.

मेरे तन को ना छुओ तुम तेरा हाथ जल न जाए.......एक ही पंक्ति में तुम और तेरा का सम्बोधन खटक रहा है, शेष आदरणीय अनंत जी से सहमत हूँ.

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 6, 2013 at 10:51pm

आदरणीय शकील जी अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु मैं संतुष्ट नहीं हो पा रहा हूँ.

तेरे, मेरे, तूने आप सभी की मात्राएँ घटाई हैं जबकि मेरे हिसाब से सभी की मात्राएँ घटाने से इनका अर्थ ही बदल जा रहा है.

तेरी याद का है जंगल यहां आग सी लगी है
मेरे तन को ना छुओ तुम तेरा हाथ जल न जाए ... यहाँ आपने ना और न का प्रयोग किया है जोकि ठीक नहीं कृपया आप भी देख लें. खैर इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें.

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 6, 2013 at 10:19pm

सुंदर गज़ल की बधाई शकील जी ।

मेरे तन को ना छुओ तुम तेरा हाथ जल न जाए// मेरे तन को न छुओ तुम कहीं हाथ जल न जाए

Comment by नादिर ख़ान on October 6, 2013 at 8:52pm

वाह-वाह शकील भाई क्या कहने ..

शानदार प्रस्तुति ।

Comment by शकील समर on October 6, 2013 at 4:00pm

आभार आपका डॉ. अनुराग सैनी जी।

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 6, 2013 at 3:58pm

शकील भाई जी इस वहम को त्याग दे की आपकी ग़ज़ल बेकार जायेगी ! हार्दिक बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर आपको !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया

पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।घुसें समझ कर सौड़ ,…See More
17 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service