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"देखो सुशीला ये रूल में नहीं है मुझे अच्छी तरह पता है कि तुम दुबारा शादी कर चुकी हो फिर कैसे अपने मरहूम पति की पेंशन ले सकती हो मैं अभी नया आया हूँ ,जैसे चलता आया है सब वैसे  ही नहीं चलेगा; मैं इस मामले में बहुत सख्त हूँ"  बड़े बाबू   की फटकार सुनते ही सुशीला की आँखे भर आई हाथ जोड़ कर बोली "साहब मेरे दो बच्चों पर रहम खाइए आप किसी को कुछ मत कहिये बड़े साहब को पता चलेगा तो" !!!  और वो फफक कर रो पड़ी।

 ,उसके रोते ही बड़ा बाबू नर्म लहजे में बोला "रोओ मत एक रास्ता है; मैं जहां पहले था उसी दफ्तर में एक महिला का केस तुम्हारे ही जैसा था, उसने समझौता कर लिया था तो मैंने हमेशा के लिए मुंह बंद रखा, तुम भी समझौता कर लो तो किसी को नहीं कहूँगा”।

 फिर धीरे धीरे कान में फुसफुसाने लगा ,सुशीला का चेहरा लाल हो गया कुछ देर अवाक सोचती रह गई फिर बोली "साहब जैसी आप की मर्जी, ठीक है कल रात दस बजे ,मेरे पति की नाईट ड्यूटी है"  सुनते ही बाबू  की बांछे खिल उठी और सुशीला केबिन से बाहर निकल गई।

अगले दिन सुशीला ने बड़े गर्म जोशी के साथ दरवाजे पर बाबू का स्वागत किया ,बाबू चारो तरफ चोर नजरे दौडाते हुए घर में घुस गए। सुशीला बाबू को अपने शयन कक्ष में जहां अँधेरा था ले जाकर बोली "आप आराम से लेट जाइए , मैं आपकी खातिदार का इंतजाम करके आती हूँ ,बेड के सिरहाने बटन है लाईट जला सकते हैं" ।

अगले ही पल बाबू ने जैसे ही लाईट जलाई  उसकी घिघ्घी बंध  गई सामने चेयर पर उसकी पत्नी ,बड़े साहब और उनकी पत्नी बैठी देख कर बाबू को हार्ट अटैक होने को हो गया,उसकी जीभ तालू से चिपक गई मुंह खुला का खुला रह गया। साहब की पत्नी गुस्से में फुफकारते हुए बोली " तुम जैसे कमीने इंसान ही औरतों को जीने नहीं देते,सुशीला की दूसरी शादी का पता हमको उस दिन से ही है ,किन्तु इसके हालात को इसके दो छोटे बच्चो को देखते हुए हम सब इसके साथ हैं अच्छा हुआ ये बात इसने तुम्हे नहीं बताई वर्ना इतनी महान  हस्ती हमारे यहाँ ट्रांसफर हो कर आई है ये कैसे पता   चलता !!!  

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मौलिक एवं अप्रकाशित 

 

 

 

 

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Comment by rajesh kumari on October 7, 2013 at 12:29pm

शुभ्रांशु पाण्डेय जी लघुकथा पर आपकी उपस्थिति और विचारों से कृतार्थ हुई ,आप सही कह रहे हैं नियम के अनुसार तो गलती की है जो सराहनीय कदापि नहीं होगी किन्तु इस कथा का मुख्य मर्म पाठकों तक पंहुच रहा है यही लिखने के उद्देश्य को पूर्ण /सार्थक कर रहा है ,आपका हृदय तल से आभार 

Comment by Shubhranshu Pandey on October 6, 2013 at 5:54pm

आदरणीया राजेश जी, 

सुन्दर कथा.

समझौते को न मानने के लिये एक बढिया नाटक रचा. लेकिन गलत तरीके से अनुदान लेने के सवाल पर उसके पास जबाब में केवल आँसू हैं. क्या एक गलती दूसरी गलती को कम कर सकती है ?

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 5, 2013 at 9:38am

आदरणीया कुंती मुखर्जी जी प्रस्तुति को आपका अनुमोदन मिला आपकी सराहना मिली रचना धन्य हुई ,दिल से आभार आपका 

Comment by coontee mukerji on October 5, 2013 at 1:21am

काश ! सुशीला जैसी साहसिक कदम हर मज़्लूम औरत उठाए.ऐसी प्रेरणादायक कृति के लिये आपको साधुवाद.आदरणिय राजेश कुमारी जी.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 4, 2013 at 10:41pm

प्रिय महिमा श्री लघु कथा को आपके शब्द मिले तबियत खुश हो गई हार्दिक आभार आपका 

Comment by MAHIMA SHREE on October 4, 2013 at 10:23pm

बहुत सुंदर संदेशपरक कथा .. सुशीला के साहस ने उसे पंक में डूबने से पहले  से बाहर निकाला...बधाई आदरणीया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 4, 2013 at 2:55pm

प्रिय अरुन शर्मा लघु कथा पर आपकी उपस्थिति तथा कथा के मर्म को अनुमोदित करते हुए आपके विचारों का हृदय से स्वागत करती हूँ ,मुझे बहुत ख़ुशी हुई मेरा लेखन सार्थक हुआ हृदय से आभारी हूँ| 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 4, 2013 at 2:09pm

आदरणीया लघुकथा का शीर्षक और देखो सुशीला ये रुल में नहीं है इतना ही पढ़कर बहुत कुछ समझ में आ गया क्यूंकि एक व्यक्ति एक स्त्री से अधिकांशतयः किस तरह के समझौता की बात करेगा पता चल जाता है. पूरी लघुकथा पढ़ने के बाद एक सुन्दर सन्देश उभर कर सामने आया कि यदि समझदारी से काम लिया जाए तो समस्याएं जड़ से ख़तम हो जाएँगी. आदरणीया इस सुन्दर संदेशपरक लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 4, 2013 at 9:57am

आदरणीय संजय हबीब जी लघु कथा के दोनों पक्षों के जिस बिंदु पर आपने समीक्षा की ये कोई आप जैसा गंभीर  रचनाकार ही कर सकता है कहानी में बड़े साहब और उसकी पत्नी के प्रसंग को जोड़ने का विशेष प्रयोजन यही था (हालांकि मैं ये प्रसंग छोड़कर इस कथा को और लघु कर सकती थी) रचना के मर्म और उद्देश्य का अनुमोदन पाकर मेरा लेखन सार्थक हुआ हार्दिक आभार आपका. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 4, 2013 at 9:51am

ब्रजेश जी कोई भी रचना तभी सार्थक होती है जब कोई पाठक  उसकी गहराई में उतर के उसके भावों को दिल से महसूस करे,इस वक़्त आप जैसा पाठक पाकर ये लघु कथा धन्य हुई आपने इसके उद्देश्य का जिस तरह से विश्लेषण किया उसके लिए हृदय तल से ढेर सारा आभार आपको  

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